इंग्लैंड में यूरोपीय संघ के बाहर के देशों से आने वाले पेशेवरों के लिए टीयर-2 (जनरल) वीजा की सीमा खत्म हो जाने के बाद भारतीय चिकित्सा विशेषज्ञों में उच्चशिक्षा व नौकरी के लिए इंग्लैंड जाने की होड़ मची है। इसके कारण पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के कई अस्पतालों को विशेषज्ञों और जूनियर डॉक्टरों की कमी से जूझना पड़ रहा है। विशेषज्ञों ने निकट भविष्य में डॉक्टरों की कमी के कारण स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में गंभीर संकट पैदा होने का अंदेशा जताया है।
कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले देवांजन सिन्हा ने एमआरसीपी के लिए वर्ष 2005 में लंदन जाने की पूरी तैयारी कर ली थी। लेकिन वीजा नहीं मिलने के कारण उनके सपने पर पानी फिर गया। इंगलैंड में प्रैक्टिस करने के लिए जरूरी पीएलएबी टेस्ट पास करने के बावजूद सिन्हा जैसे हजारों डॉक्टर इंग्लैंड नहीं जा सके थे। इंग्लैंड में पढ़ाई के इच्छुक मेडिकल छात्रों के लिए कोचिंग चलाने वाले प्रतीक चटर्जी कहते हैं कि पीएलएबी टेस्ट पास करने के बावजूद इंग्लैंड के अस्पतालों में उच्चशिक्षा या प्रैक्टिस से वंचित लोगों को अब अपना लंदन जाने का सपना अचानक साकार होता नजर आ रहा है। वे बताते हैं कि उनके संस्थान के छह छात्र अगले दो-तीन महीने में ही लंदन जा रहे हैं। उक्त परीक्षा की फीस लगभग एक लाख रुपए हैं, लेकिन कारपोरेट अस्पतालों में रेजिडेंट मेडिकल आफिसर (आरएमओ) के तौर पर काम करने वालों के लिए यह कोई बड़ी रकम नहीं है। यही कारण है कि अगले कुछ महीनों के दौरान भारी तादाद में मेडिकल छात्र और विशेषज्ञ डॉक्टर लंदन जाने की तैयारी कर रहे हैं।
महानगर कोलकाता के तमाम अस्पतालों में जूनियर से लेकर सीनियर डॉक्टरों में पढ़ाई या नौकरी के लिए इंग्लैंड जाने की बढ़ती होड़ को देखते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र में निकट भविष्य में गंभीर संकट का अंदेशा जताया है। स्वास्थ्य क्षेत्र में पहले से ही योग्य व अनुभवी डॉक्टरों की भारी कमी है। अब इंग्लैंड की ओर से वीजा पर लगी पाबंदी खत्म होने के बाद तमाम डॉक्टर वहां जाने के फेर में जुटे हैं। कोलकाता के पीयरलेस अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुजीत कर पुरकायस्थ बताते हैं कि चार महीनों के दौरान कम से कम दस वरिष्ठ डॉक्टरों ने नौकरी छोड़ दी है। इससे खाली हुई जगह को भरना मुश्किल साबित हो रहा है। इसका असर इलाज की गुणवत्ता पर पड़ना तय है। एक अन्य जाने-माने अस्पताल बेल व्यू क्लीनिक के कई विशेषज्ञ डॉक्टर भी बीते तीन महीनों के दौरान नौकरी छोड़ चुके हैं। अस्पताल प्रबंधन को अंदेशा है कि अगले दो-तीन महीनों में उसे विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी से जूझना पड़ सकता है।
बेल व्यू के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पी. टंडन कहते हैं कि जूनियर से लेकर सीनियर तक तमाम स्वास्थ्य विशेषज्ञ इंग्लैंड जाने की कतार में हैं। जल्दी ही हमें डॉक्टरों की कमी से जूझना पड़ सकता है। जूनियर डॉक्टर वहां पढ़ने जा रहे हैं तो सीनियर डॉक्टर नौकरी की पेशकश के साथ। रूबी जनरल अस्पताल और फोर्टिस अस्पताल के कुछ डॉक्टरों ने भी इसी महीने नौकरी छोड़ दी है। लेकिन वहां फिलहाल कोई संकट नहीं है। एक अस्पताल के महाप्रबंधक शुभाशीष दत्त मानते हैं कि कुछ डॉक्टर इस मौके का फायदा जरूर उठाना चाहेंगे। आखिर हर कोई अपना करिअर बेहतर बनाने का प्रयास करता है। लेकिन हमारे अस्पताल में फिलहाल पर्याप्त डॉक्टर हैं।
महानगर में शायद ही ऐसा कोई अस्पताल हो, जहां के कुछ डॉक्टरों ने बीते-दो-तीन महीनों के दौरान इंग्लैंड जाने के लिए अपनी नौकरी नहीं छोड़ी हो। पुरकायस्थ कहते हैं कि कोलकाता और बंगाल के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है। मेडिका सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आलोक राय कहते हैं कि डॉक्टरों के लिए कोलकाता में अब कामकाज का माहौल पहले जैसा नहीं रहा। दो-तीन साल के दौरान मरीजों के परिजनों की ओर से मारपीट की कई घटनाएं हुई हैं। राय के मुताबिक, जल्दी ही यहां से डॉक्टरों का पलायन तेज होने का अंदेशा है।

