मेघालय की दो अवैध कोयला खदानों में हुए हादसों में 18 मजदूरों की जलसमाधि ने पश्चिम बंगाल में कोयले के अवैध कारोबार को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है। पश्चिम बंगाल के झारखंड से सटे इलाकों में रोजगार और खुशहाली का सबसे बड़ा जरिया रहा कोयले का अवैध कारोबार ही गरीब मजदूरों के लिए विपत्ति की सबसे बड़ी वजह भी है। मोटी कमाई के लालच में अवैज्ञानिक तरीके से होने वाली अंधाधुंध खुदाई के कारण कई ऐसी खदानों में आग लग चुकी है। कुछ मामलों में तो जमीन के नीचे की आग पांच वर्षों से धधक रही है। नतीजतन रानीगंज और आसानसोल के विस्तृत इलाके ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठे हैं। इलाके में कभी भी जमीन धंस कर किसी बड़े हादसे को न्योता दे सकती है।

इस इलाके में जमीन में बिखरे ‘काले सोने’ को निकालने की कीमत मजदूरों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। वे अपना पेट पालने के लिए रोजाना इन अवैध खदानों से कोयला निकालने के लिए जमीन के भीतर जाते हैं और उनमें से कुछ लोग अक्सर उसी में दब जाते हैं। कोई बड़ा हादसा होने की स्थिति में ही दूसरों को इन मौतों के बारे में जानकारी मिलती है। लेकिन कुछ दिनों बाद फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है।

इन खदानों में काम करने वाले ही बताते हैं कि हर महीने ऐसे हादसों में 15-20 लोगों की मौत हो जाती है। रानीगंज और आसनसोल इलाके में ऐसी सैकड़ों खदानें हैं जिन पर माफिया का राज है। यह कोयला माफिया पड़ोसी झारखंड से सस्ते मजदूरों को लाकर खदानों के आसपास बसाता है। उनसे अवैध खदानों से कोयला निकलवाया जाता है। वह कोयला यहां से ट्रकों के जरिए बनारस व कानपुर तक भेजा जाता है। इस इलाके की खदानें ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) की हैं। लेकिन उसने भी इस मामले पर चुप्पी साध रखी है। अवैध खुदाई वहीं होती है जिन खदानों से ईसीएल कोयला निकालना बंद कर चुका है। मजदूर अपने हाथों में फावड़ा व मोमबत्ती लेकर खदानों के भीतर जाते हैं। वहां खुदाई के बाद कोयले को बोरियों में भर कर ऊपर लाया जाता है। मौत के मुंह में पूरे दिन जान हथेली पर लेकर काम करने के एवज में उनको महज दो सौ रुपए मिलते हैं।

कोयला उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि इलाके में लगभग पांच सौ अवैध खदानें हैं और वहां कोई 20 हजार मजदूर काम करते हैं। वे बताते हैं कि इन खदानों में अक्सर मिट्टी से दब कर या पानी में डूब कर दो-एक लोग मरते रहते हैं। लेकिन यह खबर भी उनके साथ ही वहीं दब जाती है। माफिया के हाथ बहुत लंबे हैं। कोयले की इस अवैध खुदाई से आसपास की कई बस्तियों में जमीन धंस गई है और मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं

ऐसी एक खदान में काम करने वाले सुखिया मुंडा कहते हैं कि हमें पेट की आग बुझाने के लिए मौत के मुंह में जाकर काम करना होता है। लेकिन इसके सिवा कोई विकल्प नहीं है। दुर्घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। लेकिन जान के डर से तो भूखा नहीं रहा जा सकता। वे कहते हैं कि यह खदानें हमारी रोजी-रोटी का जरिया हैं और यही हमारी मौत की वजह भी बन जाती हैं। कोयला उद्योग से जुड़े लोग बताते हैं कि इलाके में अवैध खनन एक समानांतर उद्योग है। रोजाना हजारों टन कोयला इसके जरिए निकलता है। कम समय में ज्यादा कोयला निकालने की होड़ ही हादसों को न्योता देती है। इन मजदूरों को न तो किसी तरह का प्रशिक्षण हासिल होता है और न ही वे किसी वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में हादसों का सिलसिला जारी रहेगा।