हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी की मौत के 12 दिन बाद भी कश्मीर शांत नहीं हुआ है। उधर, पाकिस्तान बुरहान वानी की मौत पर ब्लैक डे मना रहा है। वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ यह कह कर भारत को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत को कश्मीर मुद्दे पर घुटने टेक देने चाहिए। ऐसे में ‘कश्‍मीर’ का स्‍थायी हल क्‍या हो सकता है?

कड़ा विकल्‍प आजमाने का वक्‍त?
1990 से 2015 के बीच कश्‍मीर में आतंकी हिंसा की घटनाओं में 13921 आम लोग, 4961 सुरक्षाकर्मी और 21780 आतंकवादियों की जान गई है। यानी 25 साल में कुल करीब 40 हजार मौतें। इतनी कैजुअल्‍टी कारि‍गल की लड़ाई में भी नहीं हुई। सरकार ने लोकसभा में बताया है कि कारगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय में भारत के 530 जवान शहीद हुए थे। तो ये ”छद्म युद्ध” हमें भारी नुकसान पहुंचा रहा है। बातचीत से शांति लाने के सारे प्रयासों के नाकाम हो जाने के बाद अब कड़ा विकल्‍प आजमाने का वक्‍त आ गया है। भारत को पीओके में स्‍थि‍त आतंकी कैंपों को ध्‍वस्‍त करने के तरीकों पर विचार करना चाहिए।

क्‍या व्‍यावहारि‍क रूप से यह संभव है?
हमारी सेना तो हमेशा तैयार रहती है, पर राजनीति‍क नेतृत्‍व नहीं। अंतरराष्‍ट्रीय कूटनीति और वोट बैंक की राजनीति के मद्देनजर कैंप को ध्वस्त करने का फैसला लेना आसान नहीं है। खास कर तब जब पाकि‍स्‍तान भी परमाणु हथि‍यार से लैस है।

तो फि‍र क्‍या रास्‍ता बचता है?
वोट बैंक की राजनीति का ख्‍याल छोड़ दि‍या जाए तो घरेलू स्‍तर पर भी समस्‍या का हल नि‍काला जा सकता है। पाकि‍स्‍तान के प्रति रुख में जरूरी सख्‍ती लाकर, देश के अंदर आतंकी गति‍वि‍धि‍यों से सख्‍ती से नि‍पट कर और सबसे बड़ी बात यह कि कश्‍मीर के लोगों को ”कश्‍मीरी” नहीं, भारतीय होने का अहसास दि‍लाकर।