विभिन्न नदियों का उद्गम स्थल उत्तराखंड पीने के पानी के संकट से सालों से जूझ रहा है। गर्मियों के सीजन में हर साल की तरह इस साल भी पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को जल संकट से गुजरना पड़ रहा है। एक सर्वे के मुताबिक उत्तराखंड में 90 फीसद पीने के पानी की सप्लाई प्राकृतिक झरनों या पानी के छोटे-छोटे स्रोतों से होती है। पिछले पांच वर्षों में पर्वतीय क्षेत्रों में जिस तरीके से पेडों का अंधाधुंध तरीके से कटान हुआ है और जलवायु परिवर्तन के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मी बढ़ी है, उससे प्राकृतिक जल स्रोतों में पानी कम हो रहा है। कई जल स्रोत सूख गए हैं। सूबे में 19 हजार 500 जलस्रोतों में से 17 हजार जलस्रोतों में 50 से 90 फीसद तक पानी कम हो गया है और गर्मियों में हालात और भी ज्यादा बद्तर हो गए हैं। इंडियन एकेडमी आॅफ इन्वायरलमेंटल साइंंसेज तथा गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के सर्वे के मुताबिक गढ़वाल मंडल में पेयजल स्रोतों की स्थिति कुमाऊं मंडल के मुकाबले सबसे ज्यादा खराब है। पर्यावरण वैज्ञानिकों के विभिन्न दलों के सर्वेक्षण के अनुसार पहाड़ों में जल संकट की स्थिति तेजी से सूखते प्राकृतिक जल स्रोतों के कारण पैदा हुई है। जिसकी वजह भूमि के उपयोग में परिवर्तन, पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण करते हुए मलबे का जल स्रोतों पर गिरना, सड़कों का चौड़ीकरण वगैरह है।
उत्तराखंड में पर्वतीय क्षेत्रों में भूकंप के कारण 20 से 30 किलोमीटर क्षेत्र में पानी को रोकने और प्रभावित करने वाली एक्वाफिर रॉक में स्थायी या अस्थायी परिवर्तन होने से जलस्रोतों पर भारी प्रभाव पड़ रहा है। इससे जलस्तर गिर रहा है और कई प्राकृतिक जल स्रोत सूख गए हैं। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक टिहरी बांध बनने से आसपास के उन गांवों के जल स्रोत झील में डूब गए हैं जिन गांवों के लोग अभी झील के ऊपरी क्षेत्रों में रह रहे हैं। खासकर बांध के पूर्वी क्षेत्र में स्थित प्रतापनगर ब्लॉक के गांवों के जल स्रोत टिहरी बांध बनने से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। यही हालात पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर क्षेत्र में धारी देवी बांध बनने से पैदा हुए हैं। इस क्षेत्र में कई जल स्रोत धारी देवी बांध में समाहित हो गए हैं। इससे इस क्षेत्र के लोग पीने के पानी के संकट से गुजर रहे हैं।
उत्तराखंड के पेयजल मंत्री प्रकाश पंत का कहना है कि पीने के पानी की समस्या उत्तराखंड के कुछ पर्वतीय क्षेत्रों बहुत अधिक है। पूरे उत्तराखंड में 15 हजार के लगभग जल योजनाएं चल रही है। इनमें पांच हजार योजनाएं जल संस्थान तथा दस हजार योजनाएं ग्राम पंचायत के तहत है। जल संस्थान के पास जो योजनाएं हैं, उनमें से राज्य सरकार ने जो पेयजल संकटग्रस्त क्षेत्र घोषित किए हैं, उनमें 728 योजनाएं संचालित की जा रही है। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के एक सर्वे के मुताबिक प्राकृतिक जल स्रोतों के अलावा उत्तराखंड जल संस्थान द्वारा नियंत्रित अनेकों पेयजल योजनाओं में भी संकट मंडरा रहा है। संस्थान द्वारा संचालित 500 पेयजल योजनाओं में से 268 योजनाएं पानी की कमी के संकट से गुजर रही है।

