उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के नैनीताल जनपद में स्थित भीमताल झील के अस्तित्व पर गहरा खतरा मंडरा रहा है। जलवायु परिवर्तन, अवैध खनन तथा आबादी के बढ़ते दबाव की वजह से इस झील की जलीय जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। इससे झील में महाशीर मछली की विभिन्न स्थानीय प्रजातियों, अन्य जलीय जंतुओं तथा दुर्लभ वनस्पतियों की तादाद तेजी से कम हो रही है। साथ ही पानी भी प्रदूषित हो रहा है और प्राकृतिक स्रोतों पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ा है। भीमताल झील पर किए गए विभिन्न शोधकार्यों से ये कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। 20 साल में भीमताल झील के आसपास तेजी से शहरीकरण हुआ है और घने जंगलों की जगह कंक्रीट के जंगल खडेÞ हो रहे हैं। खेती की जमीन लगातार कम हो रही है और खनन माफिया के कारण भूमि का तेजी से कटाव हो रहा है। इससे भारी मात्रा में गाद झील में जा रही है। कई जगह जलस्तर घटने से कुछ टापू उभर आए हैं।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पहाड़ों में पर्यटन के विकास के नाम पर झील के आसपास होटल और रिसोर्ट्स बढ़ गए हैं। इनका गंदा पानी इसमें जा रहा है। झील के आसपास शहरीकरण, भूमि कटाव और जंगलों के कटान का भी प्रभाव दिख रहा है। 25 साल में यहां तापमान बढ़ा है। 15 साल में भीमताल और उसके आसपास के क्षेत्रों में वर्षा का क्रम असंतुलित हुआ है। भीमताल झील और उसके आसपास के क्षेत्र का वातावरण 20 साल पहले सुकुन भरा होता था और प्रकृति का आनंद उठाने वालों के लिए नैनीताल की नैनी झील के बाद भीमताल झील आकर्षण का मुख्य केंद्र थी। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जंतु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डीएस मलिक के निर्देशन में शोध छात्रा शिखा पंवार ने भीमताल झील की जलीय जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन और भूमि के कटाव से होने वाले प्रभाव विषय पर शोध किया है। इसमें झील के अस्तित्व को लेकर कई अहम जानकारियां सामने आई है।
पानी में आॅक्सीजन की मात्रा कम होने का स्तर तेजी से बढ़Þ रहा है। जिस कारण झील के पानी में रह रही मछलियों तथा अन्य जलीय जीवों की तादाद तेजी से कम हो रही है। सर्दियों में झील के जल में आॅक्सीजन की मात्रा और तेजी के साथ कम हो जाती है। इससे महाशीर मछलियों की स्थानीय प्रजातियां टौर और साइजोथोरेक्स की तादाद लगातार कम हो रही है। काठगोदाम-हल्द्वानी तक पीया जाता है पानी भीमताल झील का पानी आसपास के गांवों तथा काठगोदाम और हल्द्वानी तक पीने के लिए उपयोग किया जाता है। झील की लंबाई 1915.05 तथा चौढ़ाई 486.05 मीटर है। और झील में पानी का स्तर 4064.09 क्यूबिक मीटर है।
शोध के नतीजे
’1990 में झील के एक बिन्दू में झील की गहराई 27 मीटर थी जो आज 2017 में 17.06 मीटर रह गई है।
’ 25 साल में भीमताल झील की गहराई लगभग 10 मीटर तक कम हो चुकी है।
’15 साल में भीमताल झील और उसके आसपास के क्षेत्रों में 23 से लेकर 27 फीसदी तक शहरीकरण बढ़ा है। इससे वन और खेती की जमीन कम हुई है।
’1.05 से 2.01 डिग्री बढ़ गया है तापमान 1990 से अब तक भीमताल क्षेत्र में औरआर्द्रता (नमी) 6 से 8 फीसद घटी है।
’17 फीसद वन और खेती की भूमि शहरीकरण की भेंट चढ़ गई है। इसका प्रभाव भीमताल के पानी की गुणवत्ता पर भी तेजी से पड़ा है।
तीन सबसे बड़े खतरे
’शोध छात्रा शिखा पंवार ने अपने शोध में बताया है कि भीमताल झील के आसपास शहरीकरण, कृषि खनन और पर्यटन इसके े अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। ’झील की स्थानीय मछलियों की प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। इससे मछलियों तथा अन्य जलीय जीवों का संतुलन भी बिगड़ रहा है।
’भीमताल झील पर शोधकार्य के लिए सुदूर संवेदी प्रणाली (रिमोट सेंसिंग) तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) जैसी तकनीकी का उपयोग किया गया है।
15 साल पहले बारिश का क्रम संतुलित था, परंतु जलवायु परिवर्तन से यह संतुलन गड़बड़ा गया है। इससे बरसात के महीने में कभी 4 दिन से लेकर एक हफते तक भारी बारिश हो जाती है और फिर 15 से 20 दिन तक यह गायब रहती है। कभी-कभी बारिश बहुत तेजी से बढ़ जाती है। इस कारण बादल फटने की घटनाएं होती हैं। अतिवृष्टि से पहाड़ों से भारी मात्रा में भूमि कटान से रेत मिट्टी तेजी से झील में समा रही है। इससे इसकी गहराई लगातार कम हो रही है।
प्रोफेसर डीएस मलिक, विभागाध्यक्ष,
जंतु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय
भीमताल झील की हालत बहुत खराब है। शासन-प्रशासन ने इसकी सबसे ज्यादा उपेक्षा की हुई है। इस झील को समझने की कभी गंभीर कोशिशें ही नहीं की गई हैं। और झील के जलग्रहण क्षेत्रों में बड़े ही अनियंत्रित तरीके से निर्माण कार्य तेजी के साथ किए जा रहे हैं। इससे झील में तेजी से मलबा जा रहा है और पानी की गुणवत्ता में विपरीत प्रभाव पड़ा है। इसीलिए झील का संरक्षण अति आवश्यक है।
राजशेखर पंत, फैलो
सेंटर आॅफ साइंस एंड इनवायरलमेंट

