कुष्ठ रोगियों की सेवा ही उनके जीवन का हिस्सा बन गई है। उनकी अगली पीढ़ी की पढ़ाई, परवरिश तथा उनका उज्ज्वल भविष्य बनाना ही उनके जीवन का उद्देश्य है। उनका सारा संसार ही कुष्ठ रोगियों की सेवा करना है। समाज से उपेक्षित कुष्ठ रोगियों को नया जीवन देना और उनके बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लाना ही उनका असली धर्म है। आप हरिद्वार के गंगा किनारे स्थित चंडीघाट के तट पर चले जाइए, वहां कुष्ठ रोगियों की बस्ती में आपको कुर्ता-पजामा पहने एक शख्सियत कुष्ठ रोगियों की मरहम पट्टी करते हुए और उनके बच्चों को दुलार करते हुए मिलेगी। यह शख्सियत कोई और नहीं बल्कि आशीष गौतम हैं। जिन्होंने अपनी दुनिया कुष्ठ रोगियों और उनके बाल-बच्चों के बीच ही रचा-बसा ली है।
20 साल की कड़ी साधना के बाद आशीष गौतम ने जहां कुष्ठ रोगियों में आत्मविश्वास जगाया है, वहीं उनके बच्चों में दुनिया में कुछ कर-गुजरने का जज्बा भी पैदा किया है। आज कुष्ठ रोगियों के बच्चे सामान्य बच्चों की तरह दिव्य प्रेम सेवा मिशन और पौड़ी गढ़वाल के गंगा भोगपुर गांव में वंदेमातरम कुंज में पढ़ाई, व्यायाम करते और खेलते हुए मिल जाएंगे।
कुष्ठ रोगियों के बच्चों के लिए स्कूल वंदेमातरम कुंज और दिव्य प्रेम सेवा मिशन में कुष्ठ रोगियों के बच्चों के लिए संचालित स्कूल में इन बच्चों को हाईस्कूल तक शिक्षा-दीक्षा दी जाती है। इनके रहने के लिए स्कूल में आवासीय परिसर भी है। इनके रहने, खाने, पीने और शिक्षा का खर्च दिव्य प्रेम सेवा मिशन ही वहन करता है। सरकार से मिशन कोई आर्थिक सहायता नहीं लेता है। हाईस्कूल पास करने के बाद इन बच्चों को मिशन हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून के अन्य शिक्षण संस्थानों में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए अपने खर्चे पर भेजता है। रोगियों के कुछ बच्चे तो इंजीनियरिंग और चिकित्सा में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं। वंदेमातरम कुंज और दिव्य प्रेम सेवा मिशन में कुष्ठ रोगियों के तीन सौ से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं।
साधना की बजाय सेवा
कुष्ठ रोगियों की सेवा-सुश्रुषा का बीड़ा उठाने वाले आशीष गौतम की कहानी भी चौंकाने वाली है। उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले के निवादा गांव के आशीष इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करने के बाद 1994 में साधना के लिए उत्तराखंड के गंगोत्री के तपोवन में एक साधक के रूप में पहुंचे थे। कुछ साल वहां साधना करने के बाद 1997 में आशीष हरिद्वार पहुंचे। जहां गंगा के तट चंडीघाट में उन्हें कुष्ठ रोगियों की बस्ती की जानकारी मिली। वे वहां गए। उनकी दयनीय हालत देखकर हिमालय में तपस्या कर उच्च कोटि का साधक बनने का आशीष गौतम का विचार बदल गया। उन्होंने इनकी सेवा करने की ठान ली। 1998 में हरिद्वार में लगे कुंभ मेला के दौरान स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को उनके मन में कुष्ठ रोगियों की सेवा करने और उनके बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए दिव्य प्रेम सेवा मिशन की स्थापना करने का विचार आया। इस तरह समिधा सेवार्थ चिकित्सालय खोलकआशीष ने रोगियो के लिए एक सेवा केंद्र स्थापित किया।
कई सूबों के कुष्ठ रोगी
आशीष कहते हैं कि कुष्ठ रोगियों के बारे में कई भ्रांतियां हैं कि उनकी संतान भी कुष्ठ रोग का शिकार होती है और उनके संपर्क में आने से कोई भी इस रोग से पीड़ित हो जाता है। यह सही नहीं है। वे कहते हैं कि आज भी समाज का दृष्टिकोण कुष्ठ रोगियों के बारे में नफरत भरा है। इसी कारण कुष्ठ रोगी अपनी पहचान छुपाने के लिए अपना नाम, गांव, शहर, प्रदेश तक बदल देते हैं। हरिद्वार में ओड़ीशा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, झारखंड, बिहार, बंगाल, राजस्थान तथा अन्य प्रांतों के कुष्ठ रोगी रहते हैं।
बच्चों के ऊंचे सपने
वंदेमातरम कुंज में स्कूल में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश समेत 14 राज्यों के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। कक्षा दस के छात्र नितेश कहते हैं कि वे बैंक मैनेजर बनना चाहते हैं। कक्षा सात के अनुज कबड्डी का अंतरराष्टÑीय खिलाड़ी बनना चाहते हैं। स्कूल के वार्डन उमा शंकर का कहना है कि हमारे स्कूल के बच्चे बेहद अनुशासित हैं। आशीष गौतम इन बच्चों में भाईजी के नाम से जाने जाते हैं। वे उनके लिए आदर्श पुरुष हैं। स्वामी विवेकानंद इन बच्चों के प्रेरणा स्रोत हैं।

