सियाचिन में पिछले साल जुलाई में आग लगने की घटना के दौरान कैप्टन अंशुमान सिंह (Captain Anshuman Singh) शहीद हो गए थे। उनके माता-पिता ने परिवार के सदस्यों को वित्तीय सहायता के लिए भारतीय सेना के NOK में बदलाव की मांग की थी। इसी बीच, उत्तराखंड सरकार शहीद सैनिकों के परिवार को प्रदेश द्वारा दी जाने वाली मुआवजा राशि को पत्नी और माता-पिता के बीच में बांटने की योजना बना रही है।
शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता ने आरोप लगाया था कि उनकी बहू ने सरकार के द्वारा दी गई मुआवजा राशि को ले लिया और उनको कोई भी हिस्सा नहीं दिया। इतना ही नहीं उसने घर भी छोड़ दिया। अगर यह योजना जमीन पर उतरी तो उत्तराखंड ऐसा करने वाला पहला राज्य बन जाएगा। इस समय राज्य की सरकारें सशस्त्र बलों के लिए एनओके पॉलिसी का पालन करती है। यह तय करती है कि अगर सैनिक विवाहित था तो मुआवजे की राशि को उसके पति या पत्नी को दिया जाएगा। अविवाहित होने पर मुआवजा राशि माता-पिता या अन्य को दी जाती है।
योजना के लिए की जा रही प्लानिंग
उत्तराखंड सरकार के सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि इस मामले पर कुछ रिटायर्ड अधिकारियों के साथ में मीटिंग की गई और मामले पर गहनता से चर्चा की गई है। इस समय राज्य सरकार सशस्त्र बलों के मानदंडो के मुताबिक निकटम रिश्तेदार पॉलिसी को 25 लाख रुपये की पेशकश करती है। हालांकि हम उस योजना पर काम रहे हैं जिससे इस मुआवजा राशि को बांट दिया जाए। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि एक और मीटिंग आयोजित करने की प्लानिंग कर रहे हैं और जल्द ही इस मामले पर आखिरी फैसला लेने की उम्मीद है।
विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि इतिहास में पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां पर मुआवजा राशि मिलने के बाद सैनिक की विधवा ने माता-पिता को उनके हाल पर छोड़ दिया है। इतना ही नहीं अधिकारी ने यह भी कहा कि इस तरह की योजना अमल में आने के बाद ऐसी घटनाओं पर रोक लग जाएगी।
क्या है NOK?
अब हम बात करते हैं NOK (Next OF Kin) की यानी कि इसका सीधा मतलब यह है कि किसी व्यक्ति के सबसे नजदीकी रिश्तेदार या कानूनी प्रतिनिधि। सेना के नियम कहते हैं कि अगर सेवारत किसी व्यक्ति को कुछ हो जाता है तो मुआवजा राशि NOK को दी जाती है। सरल भाषा में यह किसी बैंक के नॉमिनी की तरह होती है। जब कोई अधिकारी सेना में शामिल होता है तो उसके माता-पिता या अभिभावक का नाम एनओके में दर्ज किया जाता है।
