वैसे तो चंबल की पहचान डाकुओं की पनाहगाह के तौर पर होती आई है लेकिन इसकी एक पहचान आजादी के आंदोलन की लंबी और निर्णायक लड़ाई लड़ जाने को लेकर भी होती है। अब आजादी के आंदोलन के यही दस्तावेज चंबल के मिजाज को नई पहचान दिलाते हुए नजर आ रहे हैं क्योंकि इन्ही दस्तावेजों ने चंबल की ओर शोधार्थियों को आकर्षित किया है ।
शाह आलम है मुख्य भूमिका में
शाह आलम चंबल संग्रहालय को बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। संग्रहालय की कल्पना उन्हीं की उपज है। शाह आलम ने अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद और जामिया नई दिल्ली से पढ़ाई की। शाह ने 2006 में ‘अवाम का सिनेमा’ की नींव रखी और देश में इसके 17 केन्द्र हैं, जहां कला के विभिन्न माध्यमों को समेटे एक दिन से लेकर हफ्ते भर तक आयोजन होते रहते हैं। शाह का नाम 2700 किलोमीटर से अधिक दूरी साइकिल से तय करके मातृवेदी के गहन शोध के लिए जाना जाता है।
अंतरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस पर हुआ समारोह
चंबल आर्काइब पर एक समारोह का आयोजन किया गया। इसमें शहर के साहित्य क्षेत्र से जुड़े लोगों के अलावा कानून के जानकार और विभिन्न दलों से जुड़े राजनेताओं ने हिस्सेदारी करके चंबल आर्काइब को इटावा मे स्थापित करने के प्रयासों को जमकर सराहा गया। इसमें आजादी के आंदोलन से जुड़े ऐसे दस्तावेजों के अलावा दुनिया की सैकड़ों की तादाद में ऐतिहासिक पुस्तकों को संग्रह धरोहर के रूप से संरक्षित किया गया है।
किशन पोरवाल का महत्व भी अपने आप में है अलग
चंबल आर्काइब के किशन पोरवाल बताते हैं कि जहां तक उपलब्धियों का सवाल है यहां पर 1825 से लेकर अब तक कि ढेर सारी दुर्लभ ऐतिहासिक किताबें हैं। जब हम इटावा के इतिहास की बात करते हैं तो यहां उससे जुड़ी हुईं 1825 की भी पुस्तकें हैं। एमा राबर्ट की इटावा के इतिहास पर लिखी हुई पुस्तक भी यहां पर है। खुद लेखक यहां आए थे जिन्होंने इटावा की भौगोलिक आर्थिक एवं सामाजिक एंव सांस्कृतिक स्थिति को देखने और समझने के बाद पूर्ण अध्ययन के नजरिए से इस पुस्तक को लिपिबद्ध किया।
14 हजार पुस्तके हैं चंबल संग्रहालय की शान
चंबल संग्रहालय में अब तक करीब 14 हजार पुस्तकें, सैकड़ों दुर्लभ दस्तावेज, विभिन्न रियासतों के डाक टिकट, विदेशों के डाक टिकट, राजा भोज के दौर से लेकर सैकड़ों प्राचीन सिक्के, सैकड़ों दस्तावेजी फिल्में आदि उपलब्ध हो चुके हैं। संग्रहालय में आठ कांड रामायण से लेकर रानी एलिजाबेथ के दरबारी कवि की 1862 में प्रकाशित वह किताब भी मौजूद है। यहां दुर्लभ और दुनिया के सबसे पुराने स्टांप, डाक टिकट भी होंगे। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा स्टेट का स्टांप, इसे दुनिया का सबसे पुराना स्टांप माना जाता है, यहां मौजूद है। साथ ही ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी स्टांप का संग्रह, तथागत बुद्ध की 2550वीं जयंती पर जारी स्टांप, आजादी की 25वीं वर्षगांठ पर भारत और सोवियत संघ द्वारा जारी स्टांप, जंग-ए-आजादी 1857 की 150 वीं वर्षगांठ पर रानी लक्ष्मीबाई पर जारी स्टांप प्रमुख संकलन में हैं। देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ आर. वेंकटरमन को विदेशी दौरों के दौरान तोहफे में आए अनोखे डाक टिकटों का संग्रह भी यहां है। ब्रिटिश काल से लेकर दुनिया भर के करीब 40 हजार डाक टिकट मौजूद हैं।