बैंक प्रबंधकों के दावे से विपरीत शहर के ज्यादातर एटीएम बूथ बेकार साबित हो रहे हैं। करीब 60 फीसद एटीएम बूथों में करंसी नहीं डाली जा रही है। जबकि बैंक अधिकारियों ने नए नोटों के हिसाब से शहर के 80 फीसद से ज्यादा एटीएम बूथों को बदल दिए जाने का दावा कई दिनों पहले ही कर दिया था। इस वजह से नोटबंदी के दो दिनों बाद जैसे हालात आज भी नोएडा में बने हुए हैं। यानी जिन एटीएम बूथों में करंसी डाली जा रही है, वहां पर लंबी लाइन पूरी रात तक लग रही है।  औद्योगिक महानगर नोएडा में 30 नवंबर और 1 दिसंबर को ज्यादातर नौकरीपेशा लोगों को तनख्वाह तो पुराने नोट थमाकर या खाते में ट्रांसफर कर दी गई है। अलबत्ता रोजमर्रा के खर्चों के लिए उनके पास रुपए नहीं बचे हैं। नतीजन नोटबंदी के 26वें दिन भी काम- काज और घर परिवार छोड़कर लोग रविवार को भी एटीएम के बाहर लाइनों में खड़े हैं। उल्लेखनीय है कि शनिवार को ज्यादातर बैंकों में करंसी खत्म हो गई थी।

दोपहर में ही बैंकों ने नकदी खत्म के नोटिस चस्पा कर दिए थे। रविवार को एटीएम में रुपए डालने के बाद राहत की उम्मीद भी पूरी नहीं हो सकी। सेक्टर- 18, 51, 62 आदि इलाकों के कुछ एटीएम बूथों में रुपए तो डाले गए लेकिन उन्हें निकालने वाली लाइन में सैकड़ों से ज्यादा लोग हर समय लगे मिल रहे हैं। बैंक प्रबंधकों ने सोमवार दोपहर तक करंसी आने की उम्मीद जताई है लेकिन राहत मंगलवार से तब मिलेगी, जब लोगों को खाते में जमा रकम निकालने का मौका मिलेगा।  उधर, नोटबंदी के बाद बैंकों में नकदी की कमी के कारण इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन की नोएडा इकाई में हाल ही में बैठक कर मजदूरों और कर्मचारियों को कूपन और शॉपिंग कार्ड के जरिए तनख्वाह का कुछ हिस्सा दिए जाने का फैसला लिया था। बाकी तन्ख्वाह को दो हिस्सों, एक नकद के रूप में और बाकी खातों में ट्रांसफर किया जाएगा।

लोकलुभावनी घोषणा करने के बाद एसोसिएशन के कुछ पदाधिकारियों को लोगों ने बताया कि ज्यादातर मजदूरों को कूपन या शॉपिंग कार्ड का इस्तेमाल करना नहीं आता है। वे एटीएम तक से बड़ी मुश्किल से रुपए निकाल पाते हैं, ऐसे में कूपन या शॉपिंग कार्ड की सुविधा क्या राहत दे पाएगी, इसका पता अगले दो दिनों में चल पाएगा। उद्यमियों के मुताबिक, नोएडा में करीब 6500 छोटे-बड़े उद्योग हैं। जहां करीब 3 लाख से ज्यादा मजदूर काम करते हैं। उद्योगों में ज्यादातर कपड़े की फैक्टरियां हैं, जिन्हें रोजाना कच्चा माल खरीदना पड़ता है। बैंक में रकम निकालने की लंबी लाइन और 50 हजार रुपए की सीमा के कारण ऐसे ज्यादातर उद्योग बंदी के कगार पर पहुंच गए हैं। जिलाधिकारी से गुहार लगाने के अलावा उद्यमी वित्त मंत्री से भी मदद को लेकर पत्र भेज चुके हैं लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं।