भारत में शिक्षा व्यवस्था को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। आपने सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की दुर्दशा और लापरवाही की कई खबरें पढ़ीं होंगी, जहां जिन शिक्षकों को पढ़ाने के जिम्मेदारी दी गई है उन्हें ही सामान्य चीजों का ज्ञान नहीं होता। मगर ऐसे में उत्तर प्रदेश से दो घटनाएं सामने आई हैं, जो इस अवधारणा को तोड़ती नजर आ रही है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती।
पहली खबर श्रावस्ती के हरवंशपुर से है, जहां उच्च प्राथमिक स्कूल से एक शिक्षक का उसके गृह जिले बस्ती में ट्रांसफर हुआ तो शिक्षक के साथ ही बच्चे और पूरा गांव रो पड़ा। टीचर हरीश कुमार 2009 से यहां सहायक अध्यापक के पद पर काम कर रहे थे। सात साल में उन्होंने अपने व्यवहार और पढ़ाने के तरीके से पूरे गांव को अपना मुरीद बना लिया था। बीते गुरुवार को स्कूल में उनका आखिरी दिन था, जिसपर गांव वालों की ओर से एक विदाई समारोह किया गया। लेकिन जैसे ही समारोह पूरा हुआ, बच्चों और उनके घरवालों की आंखों में आंसू छलक आए। बच्चों ने कहा कि वो कभी शैतानी नहीं करेंगे, बस वो स्कूल छोड़कर न जाएं।
दूसरी खबर देवरिया से है, जहां एक शिक्षक अवनीश यादव ने 2009 में गौरीबाजार के पिपरा धन्नी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक के पद पर ज्वाइन किया था। शिक्षक ने मजदूर तबके के लोगों से बच्चों से काम कराने की बजाए उन्हें स्कूल भेजने की सिफारिश की। शिक्षक की कड़ी मेहनत देख लोग बच्चों को स्कूल भेजने लगे। पिछले दिनों अवनीश का तबादला उनके गृह जनपद गाजीपुर में कर दिया गया। अवनीश के तबादले की बात पता चली, तो ग्रामीण भावुक हो उठे।
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