मौसम और सरकार की बेरुखी की दोहरी मार झेलते आ रहे किसानों की कमर नीलगायों ने तोड़ कर रख दी है। अंग्रेजी शब्कोश में ब्लू बुल के नाम से दर्ज इन वन रोजों ने पूरे उत्तर प्रदेश पर अपना कब्जा जमा लिया है। इस कारण सिर्फ चार दशक में सूबे में होने वाली अरहर की खेती में 80 फीसद तक की कमी आ चुकी है। वन विभाग ने अब तक प्रदेश में वन रोजों की गणना तो नहीं कराई है, लेकिन विभागीय अनुमान के मुताबिक प्रदेश में नीलगाय 50 लाख से अधिक हैं। उत्तर प्रदेश में 1972 के पहले तक नील गायों का खौफ किसानों के बीच उतना नहीं था। तब वन रोज का शिकार राज्य में किया जाता था। लेकिन वर्ष 1972 में इनके शिकार पर रोक लगा दी गई। नतीजा यह हुआ कि पूरे राज्य में इनकी संख्या दोगुनी रफ्तार से बढ़ने लगी।
उत्तर प्रदेश में नदियों के दोनों किनारों पर 40 बरस पूर्व तक अरहर की खेती बहुत होती थी। पश्चिमी से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश व बुंदेलखंड के कछारी इलाकों से सटे खेतों में अरहर की लहलहाती हुई फसल इन वनरोजों का पसंदीदा आहार है। अरहर पर वन रोज की शक्ल में लगातार टूटती आपदा ने किसानों को आर्थिक रूप से पंगु बना दिया। अधिकांश किसान नीलगायों की वजह से कर्जदार हो गए हैं। नतीजन अधिसंख्य किसानों ने अरहर से तौबा कर ली। उत्तर प्रदेश में नीलगायों से हर वर्ष हजारों लोग मार्ग दुर्घटना में अपनी जान गंवा रहे हैं। इस बात को ध्यान में रखकर वन विभाग वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में नीलगाय से निजात पाने के उपायों पर संजीदगी से विचार कर रहा है।
इस अधिनियम की धारा नौ में संशोधन कर मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक को नीलगाय के शिकार के लिए 1972 के पूर्व लागू शिकार नियमों को लागू करने पर वन विभाग गंभीरता से विचार कर रहा है। नियम में परिवर्तन कर नीलगायों की संख्या को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।