आलू किसानों की उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में बुरी हालात बनी हुई है। शीत गृहों मे रखा गया आलू मंदी के कारण बिक नहीं पा रहा है। परिणामस्वरूप आलू को सड़कों के किनारे फेंका जाने लगा है। कोल्ड स्टोरेज में भंडारण की समय सीमा समाप्त होने के बावजूद 15 से 20 फीसद आलू भंडारित है। बाजार में मंदी से किसान आलू निकालने नहीं पहुंचे। निकासी न होने से शीत गृह मालिकों ने आलू को फेंकना शुरू कर दिया। शुरू में तो आलू के भाव ठीक बने रहे। दिवाली के बाद से अचानक गिर गए। इससे किसानों ने शीत गृहों में आलू छोड़ दिया। इकदिल क्षेत्र के अंतर्गत हाईवे के किनारे बड़ी मात्रा में आलू फेंका गया है। लोगों ने जिला अधिकारी से हाईवे के किनारे आलू फेंके जाने पर रोक लगाने की मांग की है। वैशाली गांव निवासी लाल तिवारी का कहना है कि बाहर की मंडियों में मांग ना होने के कारण शीत गृह से आलू निकालने मे फायदा नहीं है। किरतपुर निवासी रघु कुमार ने बताया कि शीत गृह आलू को हाईवे के किनारे फेंक रहे हैं।
इटावा की गिनती प्रदेश के बड़े आलू उत्पादक क्षेत्रों में होती है। यहां लगभग साढ़े पांच लाख मीट्रिक टन आलू हर साल पैदा होता है। लेकिन इसका उपयोग न हो पाने के कारण यह बर्बाद होता है। सड़कों पर फेंका जाता है और किसानों को आलू की लागत के बराबर भी मूल्य नहीं मिल पाता है। इटावा जिले में आलू के व्यापार से जुड़े लोगों को बीते तीन साल से काफी घाटा झेलना पड़ रहा है। दो साल में करीब एक अरब रुपए का घाटा हुआ है। पूर्वाेत्तर राज्यों में आलू की पैदावार होने से वहां इस क्षेत्र के आलू की खपत नहीं रही। इसके अलावा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ सहित अन्य कई प्रांतों में भी मांग निरंतर कम हो रही है। इससे आलू की मांग न होने से 80 हजार मीट्रिक टन आलू शीतगृहों में रह गया। शुरुआत में शीत गृह मालिकों ने निशुल्क आलू बांटा था।
सब्जी एसोसिएशन के अध्यक्ष नौशे भाई का कहना है कि किसान, शीत गृह स्वामी, आढ़तिया और व्यापारी तीन सालों से घाटा झेल रहे हैं। इस साल करीब एक अरब रुपए का घाटा है। छोटे किसान तो लागत मूल्य से थोड़ा लाभ पाकर बच जाते हैंं। संपन्न किसान और व्यापारी शीत गृह में भंडारण करते हैं। बाहरी प्रांतों में मांग न होने और पंजाब-हरियाणा से नया आलू आने से आलू शीत गृहों में ही रह जाता है। जिला उद्यान अधिकारी राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि शीत गृह स्वामियों को नोटिस जारी किए गए। आलू को रोड के किनारे नहीं फेंके। सड़क के किनारे फेंके गए आलू पर जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की जाएगी। वर्ष 2017-18 में जिले में 17000 हेक्टेयर में आलू की फसल बोई गई थी । 25000 मीट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ था। अभी भी शीत गृहों में 20 फीसद आलू पड़ा हुआ। बाहर की मंडियों में आलू की आमद ना होने के कारण आलू को फेंकना पड़ रहा है।