देश की राजधानी दिल्ली से आगरा जल्दी पहुंचने के लिए लोग यमुना एक्सप्रेस-वे का इस्तेमाल करते हैं। 13 हजार करोड़ की कीमत से बने 165 किलोमीटर लंबे हाईवे को 2012 में शुरु किया गया। आरटीआई से मिली सूचना के मुताबिक अगस्त 2012 से वर्ष 2016 तक यमुना एक्सप्रेस-वे पर 548 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इन पांच सालों में यमुना एक्सप्रेस-वे पर 4054 ज्यादा हादसें हो चुके हैं। 2012 में यहां 275 दुर्घटनाएं हुई जिसमें 33 लोगों की मौत हुई। वहीं 2013 में हुई 896 दुर्घटनाओं में 118 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। 2014 में ये आकंड़ा और बढ़ गया जब 127 लोगों की मौत हुई। इस साल में 771 दुर्घटनाएं हुई। साल 2015 में यहां 919 दुर्घटनाएं हुई जिसमें 142 लोग की जान गई जबकि पिछले साल 2016 में 1193 दुर्घटनाएं हुई जिसमें 128 मौत हुई। बता दें ये जानकारी आगरा डेवलपमेंट फाउंडेशन के सचिव केसी जैन को आरटीआई के माध्यम से मिली है।
जैन ने साल 2015 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। जिसका संज्ञान लेकर कोर्ट ने एडीएफ को राज्य की उच्च स्तरीय समिति को सुझाव देने को कहा। लेकिन इस मामले पर एडीएफ ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनी कमेटी के सुझाव को ठीक से नहीं माना गया जिसकी वजह से यमुना एक्सप्रेस-वे पर हादसों की संख्या बढ़ गई। कमेटी ने सुझाव दिया था कि तय रफ्तार से ज्यादा रफ्तार पर चलने के लिए वाहनों का चालान काटा जाए। यमुना एक्सप्रेस-वे पर वाहनों की तय रफ्तार 100 किलोमीटर प्रति घंटा है। लेकिन वाहन 150 किलोमीटर प्रति घंटे या उससे भी तेज चलते हैं। जिसके कारण वाहन का संतुलन बिगड जाता है। एक आकंडे के मुताबिक साल 2015 में यहां से करीब 62 लाख वाहन गुजरे। लेकिन सिर्फ आठ हजार लोगों के चालान काटे गए।
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समिति ने सुझाव दिया था कि अगर कोई तय स्पीड से ज्यादा स्पीड से चलता है तो हरेक पांच किलोमीटर के फासले पर अरेस्टर लगाया जाए। नियम तोड़ने वाले वाहनों का पोस्टल तथा ई-चालान किया जाना चाहिए और इनका ब्योरा संबंधित थाने में दिया जाना चाहिए।
देवाशीष नाम के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि चार पहिया वाहनों की रफ्तार बहुत ज्यादा होती है जिसकी वजह से उनके टायर ज़्यादा गरम हो जाते हैं और फट जाते हैं। सर्दियों घने कोहरे की वजह से दुर्घटनाएं होती हैं। लेकिन इन सबके बावजूद भी लोग घटनाओं से सबक नहीं लेते।