रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। रहीम ने जिस दौर में यह दोहा लिखा होगा, उस वक्त उन्हें शायद ही इस बात का इल्म हो कि पानी कुछ इलाकों में सूख हलक भी तर कर पाने के लिए मयस्सर नहीं होगा। आज उत्तर प्रदेश का यही हाल हो रहा है। यहां भूजल तेजी से गिर रहा है। उसकी सबसे बड़ी वजह पानी का बेतहाशा दोहन तो है ही, वे तालाब और कुएं भी हैं जिनपर बढ़ती आबादी को छत मयस्सर कराने के लिए कंकरीट के जंगल तान दिए गए। सिंचाई विभाग के आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 30 बरस में राज्य के 20000 तालाब और 50000 हजार कुएं या तो सूख गए या पाट दिए गए हैं।

उत्तर प्रदेश में भूगर्भ जल का संकट गहराता जा रहा है। पूरा बुन्देलखण्ड और उससे आगे विन्ध्य पर्वतमाला का पूरा इलाका पानी की बेतहाशा कमी का शिकार है। पहाड़ों की बेतहाशा कटाई के कारण उससे रिसकर भूमि तक पहुंचने वाले जल की धार भी खासी प्रभावित हुई है। यह वह जल है जो वर्षा के दौरान भूमि में समाहित होता था। डा. वीके जोशी कहते हैं, जब तक सरकार नदियों के किनारे खनन से सख्ती से निपटने की इच्छा शक्ति नहीं दिखाएगी, भूगर्भ जल के संचयन के सारे प्रयास बेमानी साबित होंगे।  नए पौधे रोपकर इस दिशा में सरकार को गंभीर प्रयास करने होंगे। बिना ऐसा हुए भूगर्भ जल का संचयन कर पाना बेहद कठिन है।