उस्ताद अमजद अली खां ने अपने गुरु पिता की याद में ‘सरोद घर’ नामक जो संग्रहालय अपने जन्मस्थान ग्वालियर में स्थापित किया है, उसकी सांगीतिक पहल के तौर पर आयोजित एक संगीत संध्या ‘स्ट्रिंग्स एंड रिद्म’ राजधानी के कमानी सभागार में पेश की गई। कलाकार थे उस्ताद अमजद अली खां के पुत्र-शिष्य अमान अली खां और अयान अली खां। उनका साथ देने के लिए आए थे कोलकाता से आमंत्रित दो विख्यात तबलावादक पं कुमार बोस और पं अनिंदो चटर्जी। सरोद के तार यानी स्ट्रिंग्स और तबले की लय यानी रिद्म की इस अनूठी जुगलबंदी को सुनने लोग महंगे टिकट खरीद कर आए।
मंच की कलात्मक सज्जा और पृष्ठभूमि आकर्षक थी, जहां बीच में सरोदघर प्रस्तुति और कलाकारों के नाम थे और बाईं ओर सरोद और दाहिनी ओर तबला बजाते हाथों के श्वेत-श्याम चित्रफलक सूझ-बूझ से सजाए गए थे। शास्त्रविहित समय के नियम का ध्यान रखते हुए कार्यक्रम की शुरुआत सायंकालीन राग पूरिया कल्याण से हुई। जैसाकि नाम से ध्वनित होता है यह राग पूर्वांग में पूरिया और उत्तरांग में कल्याण का संतुलित समन्वय है। अमान और अयान ने बारी-बारी से आलाप बजाते हुए राग का शास्त्रसम्मत विस्तार क्रमश: मंद्र, मध्य और तार सप्तक में करने के बाद जोड़ का काम किया।
आलाप-जोड़ के दौरान मींड और गमक का काम सराहनीय था। झपताल में मध्य विलंबित लय की गत के साथ तबलावादकों की भागीदारी शुरू हुई। अमान ने झपताल की दस मात्राओं में तीनताल की सोलह मात्राओं को जिस तरह नापतौल कर फिट किया, कुमार भी उनके प्रत्युत्तर में उसी अंदाज से झपताल में तीनताल फिट करते हुए एक जोरदार तिहाई लेकर सम पर आए। इसी तरह अयान की बारीकियों का अनिंदो ने जवाब दिया। इसके बाद सवाल-जवाब का दौर चला दोनों जोड़ियों के बीच। यहां अमान और कुमार की जोड़ी अपेक्षाकृत आक्रामक थी और अयान व अनिंदो की जोड़ी संवेदनशील। गत, तोड़े, तिहाइयों के बाद इसी राग में द्रुत तीनताल और अतिद्रुत तीनताल की दो बंदिशें बजाते हुए तैयार झाले से उन्होंने मुख्य राग को विराम दिया।
रागेश्री उनका दूसरा राग था जिसमें उन्होंने अपने उस्ताद की रची कई बंदिशें बजाईं। पहली रचना मध्य तीनताल में थी और दूसरी चुनौती भरे चौदह मात्रा के आड़ा चौताल में तीसरी और चौथी गतें क्रमश: द्रुत तीनताल और अतिद्रुत तीनताल में थीं। सरोद के दिर दिर के काम और चक्करदार तिहाइयों का जवाब तबले भी उसी मुस्तैदी से देते रहे। बीच में सरोद ने लहरा थाम कर दोनों तबलावादकों को बारी-बारी से अपने करतब दिखाने का मौका भी दिया। अमान, अयान जब पहले राग में झाला बजा चुके थे तो इस राग में फिर से झाला बजाना आसानी से टाल सकते थे। झाला नासमझ तालियां तो बजवा लेता है, पर उससे सुरमयता को नुकसान पहुंचता है।
जुगलबंदी का समापन धुन से हुआ जिसमें कई रागों की माला के अलावा बंगाल के कीर्तन से लेकर असम के बीहू तक की झलक थी। इस शाम अयान के साज ने बार- बार उतर कर असहयोग छेड़े रखा, जिसे बीच-बीच में रुक कर मिलाना पड़ता था बल्कि एक बार बाज का तार टूट भी गया। पर इन दोनों युवा सरोदवादकों ने इधर मेहनत की है यह उनके इस शाम के प्रदर्शन से साफ जाहिर था। दोनों सिद्धहस्त संगतकार तबला वादकों ने भी पूरी शाम इन दोनों सरोदियों को जमाने में भरपूर सहयोग दिया।