बिहार के भागलपुर में शंकरपुर पंचायत के सरपंच आनंदी मंडल को नहीं पता कि शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सरपंचों से बात की। शुक्रवार 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस था। गांधी ने जिस स्वायत्त ग्राम-स्वराज का सपना देखा था। उसको साकार करने में कोसों दूरी तय करने की जरूरत है। शंकरपुर पंचायत उस अधूरे सपने का एक नमूना है। जहां सरपंच को दरकिनार कर मुखिया-रोजगार सेवक-ठेकेदार और बीडीओ का लूटतंत्र हावी है। पंचायती राज दिवस के मौके पर इस संवाददाता ने शंकरपुर जाकर वहां के सरपंच से बातचीत की है।

ग़ांव में शहरों जितना कोरोना का ख़ौफ़ नहीं है। न ही वैसा सन्नाटा। मुखिया ने एक परिवार को एक मास्क और एक छोटा साबुन दिया है। फिर भी मुंह पर गमछा और सामाजिक दूरी का बखूबी पालन ग़ांव के लोग कर रहे है। सब अपने काम में मग्न है। कोई अपने मवेशी को दाना-पानी तो कोई गेहूं की फसल काटने तो कोई हरी सब्जियों में पानी पटाने में मशगूल है। दियारा की सफेद बालू धूप में दूर से ही चांदी के कण की माफिक चमकती है। दो दशक पहले यहां अपराधियों के घोड़ों की चाप और बंदूकें गरजती थी। अब वैसी नहीं है।

सरपंच आनंदी मंडल कहते है आजादी के 70 साल से ज्यादा हो चुके है। मगर शंकरपुर ग़ांव आने के लिए एक अदद सड़क पुल नहीं है। वैरिया, लालुचक, श्रीरामपुर में पुल बन गया। मगर भागलपुर से शंकरपुर आने जाने के लिए पक्का पुल तक नहीं है। ग़ांव के लोगों ने श्रमदान कर चचरी पुल बना रखा है। मगर बारिश और बाढ़ के दिनों में यह बह जाता है। नाव ही सहारा है। सालों से दिक्कत झेल रहे है। सांसद बुलो मंडल उसके पहले शाहनवाज हुसैन को ग़ांव वालों ने कहा। पर पुल नहीं बना। सांसद अजय मंडल जीत कर जाने के बाद लौटकर नहीं आए। आप ही ग़ांव की आवाज प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री तक पहुंचा दीजिए।

ग़ांव का सरपंच यह बात दुखी होकर कहता है। हम किस ग्राम -स्वराज और पंचायती राज के अधिकार की बात करते है? वाकई भागलपुर से यहां आने में दिक्कत है। खासकर बारिश और बाढ़ के मौसम में। यह नाथनगर प्रखंड का हिस्सा है। पंचायत में नन्हका, चबनिया, शंकरपुर, अठगावा, दिलदारपुर विंदटोली बगैरह ग़ांव है। यहां उच्च विद्यालय नहीं है। इन गांवों के लोग मवेशी पालन कर दूध बेच और सब्जियां और धान छोड़ दूसरे अनाज पैदा कर अपना गुजारा करते है। शुद्ध रूप से किसान है।

मगर प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना की राशि सभी को नहीं मिली है। वृद्धावस्था पेंशन भी कई महीनों से बंद है। शौचालय अधूरे पड़े है। कही छत नहीं तो कहीं दरवाजा नहीं तो कहीं सीट ही गायब है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अतिमहत्वाकांक्षी योजना हर घर नल घर घर जल फेल है। सरपंच कहते है कि जल आपूर्ति के लिए सड़क पर पाइप बिछी तो है। लेकिन ये पाइप घरों तक नहीं पहुंची है। लोग चापाकल का पानी पीने को मजबूर है। बिजली गांव में है। और रहती भी है। इस पर वे सुकून महसूस करते है।

शंकरपुर में पंचायत भवन बना है। मगर सामने से तो ठीक – ठाक है। पर पीछे से अधूरा पड़ा है। लोहे की सरिया जहां तहां निकली पड़ी है। लगता है निर्माण काम यूं ही छोड़ दिया गया है। सरपंच आनंदी मंडल इस बात से भी वाकिफ नहीं है कि प्रधानमंत्री ने आज ई-ग्राम स्वराज एप और स्वामित्व नाम की योजना ग्राम पंचायतों के लिए लागू की है। इन्हें जानकारी होती भी कैसे? किसी अधिकारी ने इन्हें सरपंचों से प्रधानमंत्री का सीधा संवाद होने की बात नहीं बताई गई। उन्हें जब यह बताया गया कि स्वामित्व योजना के तहत जिसकी जमीन है उसका हक दिलाने के लिए बनाई है।

इस पर वे खुश हुए। चेहरे पर हंसी बिखेरते हुए बोले यह प्रधानमंत्री जी ने अच्छा किया है। गांवों में खून-खराबे की जड़ में जमीन ही तो है। दरअसल बारिश और बाढ़ में दियारा क्षेत्र की जमीन डूब जाती है। बाढ़ का पानी निकलने के बाद बदमाश किस्म के लोग अपना हक जताने लगते है। जबकि जमीन का नक्शा असल मालिक के नाम होता है। और तो और जिस हिस्से में बाढ़ का पानी रुका रहता है। उसका पर्चा सरकारी अधिकारी कमजोर वर्ग के लोगों के नाम कर देते है। इसी में झंझट होता है। इसका निदान निकल जाए तो गांधी के सपनों का ग्राम- स्वराज कायम हो जाएगा। तभी राम राज्य आ सकेगा।

इससे एक बात जाहिर होती है कि देश में पंचायतों को अधिकार तो दिए गए । मगर अफसरशाही हावी है। आनंदी मंडल सरीखे सरपंच फालतू प्रपंच में नहीं रहते । इसलिए बीडीओ-मुखिया-ठेकेदार -रोजगार सेवक का गठजोड़ हावी है। शायद प्रधानमंत्री की पंचायतों से पहली दफा हुई बातचीत देश को नई दिशा दे सकता है।