उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक विकसित शहर नोएडा में कुछ दिनों पहले करोड़ों रुपए का फर्जीवाड़ा करने के आरोपी को पकड़ने के लिए पंजाब पुलिस कोर्ट के आदेश पर आई थी। सेक्टर-39 की एक कोठी में रहने वाली पत्नी ने आरोपी पति को कमरे में बंद कर बाहर से ताला लगा दिया। चूंकि पंजाब पुलिस के साथ महिला पुलिसकर्मी नहीं थी। लिहाजा वे आरोपी की पत्नी से चाबी नहीं ले पाए। पंजाब पुलिस ने थाना सेक्टर- 39 से महिला पुलिसकर्मी मुहैया कराने की मदद मांगी। बताया गया कि थाना सेक्टर- 39 में महिला पुलिसकर्मी नहीं हैं। इस बीच पत्नी ने मौका देखकर पति को वहां से भगा दिया और पंजाब पुलिस खाली हाथ लौटी।
थानों में महिला सुरक्षा की यह स्थिति पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसी कस्बे की नहीं बल्कि उप्र के सबसे तरक्कीशुदा महानगर नोएडा की है। 2012 में निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले के बाद वैश्विक स्तर पर देश की किरकिरी होने के बाद केंद्र और राज्य सरकारों ने तमाम तरह के बुनियादी सुधार महिला सुरक्षा के मद्देनजर करने का ऐलान किया था। जिसमें सबसे अहम महिलाओं में इंसाफ और मदद का भाव जगाने के लिए थानों में महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती थी। जबकि हकीकत 4 साल बाद भी बदल नहीं पाई है। आंकड़ों के मुताबिक, नोएडा में कुल पुरुष कर्मियों के सापेक्ष 10-15 फीसद महिला पुलिस कर्मी हैं। अलबत्ता महिला थाने के अलावा अन्य थानों में महिला पुलिसकर्मियों को समतुल्य संख्या में तैनात नहीं किया गया है। हालांकि महिला हेल्पलाइन 1090 को नोएडा में खास तौर पर महिलाओं से जुड़े अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए शुरू किया गया है लेकिन प्रचार-प्रसार की कमी के कारण ज्यादातर युवतियों को ऐसी हेल्पलाइन या नंबर तक की जानकारी नहीं है।

गुलाबी आॅटो भी दिखावटी बने
1. महिला सुरक्षा के लिए अगस्त में नोएडा में ‘पिंक आॅटो’ शुरू हुए थे। खास तौर पर महिला की सुविधा के लिए गुलाबी रंग के यह आॅटो केवल महिलाओं के लिए चलाए गए थे। इनमें पुरुषों के बैठाने पर रोक थी। यह सेवा शुरू करते समय यह एलान किया गया था कि सभी मेट्रो स्टेशनों के आसपास गुलाबी आॅटो मौजूद रहकर महिलाओं को सवारी के रूप में बैठाएंगे। जबकि हकीकत इससे उलट हुई। शाम 7-8 बजे के बाद गुलाबी आॅटो दिखाई नहीं देते हैं। इसे चलाने वाले अब पुरुषों को सवारी के रूप में बैठा रहे हैं। हालांकि पुरुषों को बैठाने पर 22 आॅटो के चालान भी किए गए हैं।

तीन महीने भी नहीं चल पाई सखी बस सेवा
मार्च 2013 में महिला सुरक्षा को ध्यान में रखकर उप्र सड़क परिवहन विभाग ने नोएडा में सखी सेवा शुरू की थी। यह बस सेवा केवल महिलाओं और लड़कियों के लिए शुरू की थी। मुसाफिरों की संख्या के लगातार कम रहने पर इसे बंद कर दिया गया। अब इस तरह की महिलाओं के लिए कोई सुरक्षित बस सेवा नहीं है। बताया गया कि समय को लेकर बसों में महिला मुसाफिरों की संख्या कम रही। यह सब सेवा केवल 5.30 बजे तक चलती थी। जबकि कामकाजी महिलाएं इसे 8 बजे तक चलाना चाहती थी। नोएडा से ग्रेटर नोएडा के बीच चलने वाली इस बस सेवा से महिलाओं को बड़ी उम्मीद थी।

कैमरे और परदे हटाने का एलान भी हवाहवाई
बसों को सुरक्षित बनाने के लिए लगने वाले कैमरे 4 साल बाद भी नहीं लग पाए हैं। लगातार घाटे का तर्क देकर परिवहन विभाग के अधिकारी अब कैमरे लगाने के मुद्दे पर बात तक करने को तैयार नहीं हैं। जबकि 2013 में सभी बसों में महिला सुरक्षा के मद्देनजर कैमरे लगाने की घोषणा हुई थी। इसके अलावा पर्यटक बसों में लगे परदों और रंगीन शीशों को हटाने का भी एलान किया गया था। समय बीतने के साथ सभी एलान महज बयानबाजी बन कर रह गए हैं।

फैक्ट्री से अकेले घर जाना…
निर्भया मामले के बाद नोएडा के ज्यादातर सामाजिक संगठनों ने गोष्ठियों के जरिए महिला सुरक्षा को लेकर तमाम उपाए सुझाए थे। जिन पर अमल करते हुए नोएडा के उद्यमियों के संगठन नोएडा एंटर प्रिन्योर्स एसोसिएशन ने सभी फैक्ट्री मालिकों को महिला कर्मियों से केवल दिन में काम कराने की अपील की थी। साथ ही दिन छिपने के बाद फैक्ट्री से जाने वाली महिलाओं को घर तक पहुंचाने की व्यवस्था करने का दावा किया था। साथ ही काम खत्म होने के समय औद्योगिक इलाकों में गश्त बढ़ाने पर भी पुलिस ने रजामंदी जताई थी। जिस समय यह घोषणा हुई, उसके महज एक महीने बाद व्यवस्था पूरी तरह से पुराने ढर्रे पर आ गई है।