उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति कर्णन के प्रशासनिक और न्यायिक कार्य बहाल करने से इंकार किया, अवमानना नोटिस का जवाब देने के लिए उन्हें चार सप्ताह का वक्त दिया। न्यायमूर्ति कर्णन ने उच्चतम न्यायालय से कहा, ‘‘ मैं संवैधानिक पद भी संभाल रहा हूं। मेरी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई गई है और मेरा पक्ष सुने बिना ही मेरा काम मुझसे ले लिया गया।’’प्रधान न्यायाधीन जे एस खेहर के नेतृत्व में सात न्यायाधीशों वाली पीठ ने सुझाव दिया कि न्यायमूर्ति कर्णन अगर मानते हैं कि वह जवाब देने के लिए ‘‘मानसिक तौर पर चुस्त-दुरुस्त नहीं हैं’’ तो वह मेडिकल रिकॉर्ड पेश कर सकते हैं। मूर्ति कर्णन ने उच्चतम न्यायालय ने कहा- मुझे कोई चिकित्सीय प्रमाणपत्र दिखाने की जरूरत नहीं है।
बता दें उच्चतम न्यायालय ने अवमानना के एक मामले में पेश नहीं होने पर कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सीएस कर्णन के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था। न्यायमूर्ति कर्णन ने अपने जवाब में आरोप लगाया कि साथी न्यायाधीश उनकी जाति समेत विभिन्न आधारों पर भेदभाव और ‘सामाजिक बहिष्कार’ करते हैं। उन्होंने कहा कि यहां तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी अवमानना का नोटिस जारी कर दिया और उनकी बात सुने बिना ही उनसे उनकी प्रशासनिक एवं न्यायिक अधिकार छीन लिए।
यह आदेश भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में अभूतपूर्व है। न्यायमूर्ति कर्णन ने वारंट जारी करने पर शीर्ष अदालत पर पलटवार किया और इसे ‘‘असंवैधानिक’’ करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें दलित होने पर निशाना बनाया जा रहा है।
न्यायमूर्ति कर्णन ने कहा, ‘‘मैंने प्रधान न्यायाधीश और प्रधानमंत्री से शिकायतें की थीं। मेरे खिलाफ स्वत: ही अवमानना की कार्रवाई शुरू कर दी गई। मेरी बात सुनने से पहले ही मुझसे मेरा काम छीन लिया गया। आम जनता की नजरों में मेरी प्रतिष्ठा धूमिल हुई। मैं भी एक संवैधानिक पद पर हूं। क्या मेरा कोई सम्मान या प्रतिष्ठा है?’’
उन्होंने कहा कि पुलिस अधिकारी वारंट लेकर उनके दफ्तर में दाखिल हो गए। उन्होंने कहा, चूंकि मैं भी संवैधानिक पद पर बैठा एक न्यायाधीश था, ऐसे में ‘‘यह सिर्फ मेरा नहीं बल्कि पूरी न्यायपालिका का अपमान है।’’ इस पर पीठ ने कहा कि पूर्व में उसने न्यायमूर्ति कर्णन को नोटिस जारी किया था और जब वह पेश होने में विफल रहे, तभी पीठ ने उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था।