सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्यों और मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया (एमसीआइ) से याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा है कि क्या निजी अस्पतालों में आइसीयू या सीसीयू में भर्ती मरीजों को प्रदान किए जा रहे उपचार की जानकारी अटेंडेंट को देने के लिए कोई दिशा-निर्देश है। अदालत ने यह सवाल उस व्यक्ति की याचिका पर पूछा है, जिसने चिकित्सकों की लापरवाही की वजह से अपनी पुत्रवधू को खो दिया। उसका पश्चिम बंगाल के एक निजी अस्पताल में इलाज हुआ था। मरीजों के रिश्तेदार या मित्र, जो निजी अस्पतालों के सघन निगरानी कक्ष और क्रिटिकल केयर यूनिट के बाहर घंटों वक्त बिताते हैं, कई बार उन्हें यह जानकारी भी नहीं होती है कि उनके रिश्तेदार का क्या उपचार किया जा रहा है।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने याचिका का संज्ञान लिया कि निजी अस्पतालों में गंभीर रूप से बीमार मरीजों के रिश्तेदारों को आमतौर पर उनके उपचार के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है।

पीठ ने केंद्र, एमसीआइ और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया और छह हफ्ते के भीतर उनसे जवाब मांगा। पीठ ने कहा कि जो लोग चिकित्सकों या अस्पताल प्रशासन की लापरवाही की वजह से कष्ट भुगतते हैं वो अगर उपचार के बारे में उन्हें सूचना हो तो मुआवजे के लिए उपभोक्ता मंच जा सकते हैंं। शीर्ष अदालत का यह आदेश पश्चिम बंगाल निवासी असित बरन मंडल की याचिका पर आया, जिन्होंने अपनी पुत्रवधू के इलाज में चिकित्सकों की तरफ से लापरवाही का आरोप लगाया। मंडल ने आॅपरेशन के बाद देखभाल में कथित चिकित्सीय लापरवाही में अपनी पुत्रवधू को खो दिया।