बीएसएफ प्रवेश परीक्षा के टॉपर नबील अहमद वानी को भले ही सरकार कश्‍मीर में पत्‍थर फेंक रहे युवाओं के खिलाफ उदाहरण के रूप में पेश कर रही हो लेकिन यह वानी घाटी से नहीं है। ना तो नबील और ना ही उनका परिवार कभी कश्‍मीर गया है। वानी के बीएसएफ की असिस्‍टेंट कमांडेंट परीक्षा में पहले पायदान पर आने के बाद से उन्‍हें कश्‍मीर के पथराव कर रहे युवकों के जवाब के रूप में पेश किया जा रहा है। गौरतलब है कि हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से कश्‍मीर में तनाव है। नबील वानी का जन्‍म जम्‍मू के उधमपुर में हुआ और उनका कश्‍मीर से कोई रिश्‍ता नहीं है। उनका कोर्इ रिश्‍तेदार भी वहां से नहीं है।

वानी की मां हनीफा बेगम ने बताया, ”हम वानी हैं लेकिन कश्‍मीर से नहीं हैं। हम हमेशा से उधमपुर में रहे हैं। हमारे पूर्वज भी यहीं के थे। सच कहूं तो हमेशा यह दुख रहा कि पास होकर भी हम कश्‍मीर नहीं गए।” गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को वानी को अपने घर बुलाया था और बधाई दी थी। उन्‍होंने वानी को राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि और अन्‍य अधिकारियों से भी मिलाया था। वानी मध्‍यम वर्गीय परिवार से आते हैं और उनकी परवरिश भी सामान्‍य रूप से ही हुई। उनके पिता सरकारी अध्‍यापक थे। वानी की स्‍कूली पढ़ाई गांव में ही हुई। इसके बाद पंजाब टेक्‍नीकल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की। उनकी छोटी बहन भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही हैं।

हनीफा बेगम ने बताया कि उनके पति की दो साल पहले मौत हो गई। परिवार उनकी पेंशन पर गुजारा करता है। उन्‍होंने बताया, ”मुझे दो बच्‍चों की फीस भरनी होती थी और कभी पूरे पैसे नहीं होते थे। मैंने कभी नबील को कोचिंग नहीं कराई। कॉलेज में खर्च के लिए जो पॉकेट मनी देती थी उससे वह किताबें खरीद लेता था। वह अपने काम को लेकर फोकस रहता था। अपने लिए कभी-कभार ही नए कपड़े खरीदता था और बाहर भी कभी खाना नहीं खाता था। वह कभी घूमने भी नहीं गया। पैसों की कमी के कारण हम कभी कश्‍मीर भी नहीं जा सके।”

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वानी ने आर्थिक तंगी को कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्‍चय से बदल दिया। बकौल हनीफा, ”वह पढ़ाई में काफी अच्‍छा था। हमेशा क्‍लास में अव्‍वल आया। इंजीनियरिंग की पढ़ार्इ में भी टॉपर रहा। वह शुरू से कहता था कि उसे सुरक्षा बलों में जाना था। वह देश के लिए कुछ करना चाहता था।” हालांकि पिता की अचानक मौत से वानी पर नकारात्‍मक असर पड़ा।

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उनकी मां के अनुसार, ”पिता के गुजर जाने के बाद वह अवसाद में आ गया। वह कहने लगा कि मैं किसी परीक्षा में नहीं बैठूंगा क्‍योंकि उसका नतीजा देखने के लिए पिता ही मौजूद नहीं है। उसने इच्‍छा ही खो दी। लेकिन मैंने उसे समझाया। मैंने उसे कहा कि तुम्‍हारे अब्‍बू तुम्‍हारे कामयाबी चाहते थे। हम मिडिल क्‍लास परिवार हैं तो कभी बड़े सपने नहीं रखे। लेकिन मेरे बेटे ने जो हम सोच सकते थे उससे कहीं ज्‍यादा हासिल किया है। मुझे मेरे बेटे पर नाज है। उसने पूरे देश को गर्व से भर दिया।”