पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले ही राजनीतिक दल तैयारियों में जुट गए हैं। कई दल पहले से ही गठबंधन बनाकर सत्तासीन कांग्रेस को चुनौती देने की तैयारी में हैं। इनमें पहला नाम शिरोमणि अकाली दल (SAD) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का है। दोनों ही पार्टियां इस बार पंजाब में साथ ही सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस को चुनौती देते नजर आएंगी। इस फैसले का ऐलान करते हुए अकाली दल के विधायक एनके शर्मा ने कहा कि हम एक बार फिर साथ आ रहे हैं और पंजाब के चुनावों में एकतरफा जीत हासिल करेंगे।

माना जा रहा है कि नए गठबंधन के जरिए सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व वाली पार्टी उस खालीपन को भरने की कोशिश करेगी, जो भाजपा से गठबंधन टूटने की वजह से कायम हो गया था। बता दें कि करीब 25 साल पहले अकाली दल और बसपा ने 1996 के लोकसभा चुनाव के लिए हाथ मिलाया था। तब दोनों पार्टियों के गठबंधन ने पंजाब में 13 में से 11 सीटें कब्जाई थीं। इनमें 10 सीटों में से 8 पर अकाली दल और बसपा ने लड़ी गईं सभी 3 सीटें जीती थीं।

भाजपा के साथ गठबंधऩ का जोखिम नहीं लेगी SAD: रिपोर्ट्स की मानें तो इस बार बसपा को साथ लाने में असल रोल सुखबीर बादल का है। उन्होंने पिछले हफ्ते ही ऐलान किया था कि वे भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को छोड़कर बाकी किसी भी दल के साथ पंजाब चुनाव में उतरने को तैयार हैं। उन्होंने कहा था कि लंबे समय से भाजपा के साथ रहने के बावजूद वे अब उनके साथ नहीं जाना चाहते हैं।

बता दें कि अकाली दल और भाजपा पिछले साल ही कृषि कानून पर विवाद होने के बाद अलग हो गए थे। पंजाब में मौजूदा समय में भी भाजपा के फैसले के खिलाफ किसानों का गुस्सा बरकरार है। ऐसे में अकाली दल कोई जोखिम नहीं उठाना चाहेगा।

पंजाब में पकड़ बना सकती है बसपा?: गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दलों में से एक बहुजन समाज पार्टी उत्तराखंड और बिहार समेत अन्य राज्यों में भी ठीक प्रदर्शन करती आई है। पार्टी के लिए एक अच्छी बात यह है कि पंजाब में भी 31 फीसदी दलित वोटों पर उसकी मजबूत पकड़ है। इन वोटों का ज्यादातर असर दोआबा क्षेत्र की 23 सीटों पर है। बताया जाता है कि पंजाब की आबादी में 40 फीसदी हिस्सा दलितों का ही है।

बसपा को चुनाव लड़ने के लिए मिलीं भाजपा जितनी सीटें: पंजाब में अकाली दल बसपा की सीनियर पार्टी की भूमिका निभाएगी। ऐसे में 117 सीटों वाली विधानसभा में बसपा को इस बार भाजपा की तरह ही 20 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला है। वहीं ज्यादातर सीटों पर अकाली दल ही उतरेगा। गौरतलब है कि पंजाब में अकाली दल और भाजपा सबसे लंबे समय तक साझेदार रहे थे। इसके बावजूद अकाली दल ही राज्य की प्रभावी पार्टी रही।