Sambhal Mandir Survey: उत्तर प्रदेश के संभल में 46 साल बाद खुले प्राचीन कार्तिकेय मंदिर का शुक्रवार को एएसआई की टीम ने सर्वे किया। प्रशासन ने एएसआई की चिट्ठी लिख मंदिर की कार्बन डेटिंग कराने की मांग की थी। चार सदस्यीय टीम ने 5 तीर्थ और 19 कूपों का भी सर्वे किया। इस दौरान प्रशासन ने मीडिया को कवरेज से दूर रखा। इससे एक दिन पहले ही प्रशासन की राजस्व विभाग की टीम ने मंदिर की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की थी।
संभल का सच आएगा सामने?
संभल में मिले प्राचीन मंदिर की जांच के लिए प्रशासन ने एएसआई को पत्र लिखा था। प्रशासन मंदिर की कार्बन डेटिंग करना चाहता है। इससे मंदिर कितना पुराना है, इसकी जानकारी सामने आएगी। 46 साल बाद खुले कार्तिकेय मंदिर की कार्बन डेटिंग के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की चार सदस्यीय टीम मौके का मुआयना किया। दोपहर को एएसआई की टीम संभल पहुंची और सर्वे का काम पूरा किया। ASI की टीम ने मंदिर के अलावा कुएं की कार्बन डेटिंग भी की है। जिलाधिकारी संभल राजेंद्र पेंसिया के अनुसार, मंदिर का सर्वेक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। इसकी रिपोर्ट कुछ समय बाद सामने आएगी।
400 साल पुराना बताया जा रहा मंदिर
खग्गू सराय में मिला मंदिर 400 साल से ज्यादा पुराना बताया जा रहा है। इस मंदिर में शिवलिंग और हनुमान जी की मूर्ति मिली है। डीएम डॉ. राजेंद्र पैंसिया ने एएसआई को कार्बन डेटिंग के लिए पत्र लिखा था। इसके बाद स्पष्ट होगा, मंदिर और कुआं कितना पुराना है। राजस्व विभाग ने इस मंदिर का निरीक्षण किया। मंदिर के गर्भगृह में हनुमान जी की प्रतिमा और शिवलिंग की नपाई की गई। मौके पर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी कराई गई।
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कार्बन डेटिंग क्या होती है?
कार्बन डेटिंग को रेडिया कार्बन डेटिंग के नाम से भी पहचाना जाता है। माना जाता है कि कार्बन डेटिंग से किसी जीवाश्म या पुरातत्व संबंधी वस्तु की आयु की पुख्ता जानकारी मिल जाती है लेकिन असल में ऐसा नहीं होता है। इससे किसी भी वस्तु की सिर्फ अनुमानित उम्र ही पता चल पाती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, हर प्राचीन वस्तु पर समय के साथ कार्बन के तीन आइसोटोप आ जाते हैं, जो पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं के कारण होते हैं। इनमें कार्बन-12, कार्बन-13 और कार्बन-14 शामिल हैं।
कार्बन-14 के जरिये ही डेटिंग विधि का इस्तेमाल किया जाता है। कार्बन डेटिंग केवल उन्हीं चीजों की हो सकती है जिस पर कार्बन की मात्रा मौजूद हो। खास तौर पर इसके लिए कार्बन-14 का होना जरूरी है। दरअसल कार्बन-12 स्थिर होता है, इसकी मात्रा घटती नहीं है। वहीं कार्बन-14 रेडियोएक्टिव होता है और इसकी मात्रा घटने लगती है। कार्बन-14 लगभग 5,730 सालों में अपनी मात्रा का आधा रह जाता है। इसे हाफ-लाइफ कहते हैं। आगे पढ़ें संभल मामले से जुड़ी हर बड़ी अपडेट