राजस्थान में सरकारी भर्तियों की परीक्षाओं को लेकर बेरोजगारों में गहरी नाराजगी पनपी हुई है। प्रदेश में पिछली सरकार ने अपने अंतिम साल में भर्तियां निकालीं और उनकी परीक्षाएं भी हो गईं। इनमें लाखों बेरोजगार युवा अपना भविष्य बनाने के लिए शामिल हुुए। परीक्षा हुए लंबा अरसा गुजर गया पर उनका परिणाम अब तक नहीं आ पाया और जिन परीक्षाओं का नतीजा आ गया तो उनमें उन्हें नियुक्ति देने की प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हो पाई है। इन हालात के कारण प्रदेश के बेरोजगारों में कुंठा पनप रही है और आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ रहा है। सरकारी भर्तियों के आंकड़ों के हिसाब से तो सात साल में कोई भी भर्ती समय पर पूरी नहीं हो पाई है। सभी भर्तियों में नियुक्ति देने में तीन से पांच साल का समय लगा है। भर्ती परीक्षाओं में देरी के कारण सरकार और बेरोजगारों दोनों को ही इसमें समय के साथ करोडों रुपए गंवाने पड़ रहे हैं।

पिछली सरकार ने चुनाव से कुछ महीने पहले ही बडी संख्या में सरकारी नौकरियों के लिए जगह निकाली थीं। इनमें से कई की परीक्षा तो चुनाव आचार संहिता के बीच हुई। ऐसी परीक्षाओं में तो कई को पांच महीने से ज्यादा हो गए, पर इनका परिणाम अभी तक नहीं आने से अभ्यर्थियों में नाराजगी पनपी हुई है। अभ्यर्थियों का कहना है कि जब ज्यादातर परीक्षाएं ऑनलाइन हुई हैं तो उनमें ज्यादा से ज्यादा एक महीने के भीतर नतीजा आ जाना चाहिए। नतीजे में देरी होने से बेरोजगारों के मन में कर्ई आशंकाएं भी पनप रही हैं। प्रदेश में लोक सेवा आयोग और कर्मचारी चयन बोर्ड परीक्षाएं करवाता है।

राज्य कर्मचारी चयन बोर्ड ने वर्ष 2018 में एलडीसी भर्ती परीक्षा अगस्त व सितंबर महीने में करवाई थी। इसके लिए 16 जिलों में 985 परीक्षा केंद्र बनाए गए और इसमें 13 लाख से ज्यादा बेरोजगारों ने परीक्षा दी थी। सरकार ने 11 हजार 255 एलडीसी के पदों के लिए भर्तियां निकाली थीं। इस परीक्षा के नतीजे का अभ्यर्थी इंतजार कर रहे हैं। इसी तरह से राज्य लोक सेवा आयोग ने सीनियर सेकंडरी स्कूलों के लिए प्रधानाध्यापक भर्ती परीक्षा पिछले साल दो सितंबर को करवाई थी। इसमें 1200 पदों के लिए डेढ़ लाख से ज्यादा युवाओं ने परीक्षा दी थी।

इसी तरह से जेल प्रहरी के 600 पदों की परीक्षा पिछले साल नवंबर में हो गई और लोक सेवा आयोग ने नौ हजार द्वितीय श्रेणी शिक्षक पदों की भर्ती परीक्षा गत वर्ष अक्तूबर में करवाई। इसमें नौ लाख अभ्यर्थी शामिल हुए। इन सभी परीक्षाओं के परिणामों का अभी तक कुछ पता नहींं है। इसके अलावा जिन परीक्षाओं के नतीजे जारी कर दिए गए हैं उनमें युवाओं को नियुक्ति के लिए अभी चक्कर काटने पड़ रहे हैं तो आंदोलन का भी सहारा लेना पड़ रहा है।

राजस्थान बेरोजगार एकीकृत महासंघ के अध्यक्ष उपेन यादव का कहना है कि भर्ती एजंसियां पहले तो परीक्षा लेने में ही देरी कर देती हैं। उसके बाद परिणाम जारी करने में देरी करती हैं। इसके कारण युवाओं में आक्रोश पनप रहा है। इस तरह की देरी से भर्तियां उलझ जाती हैं और कर्मचारी चयन बोर्ड या लोक सेवा आयोग की प्रतिष्ठा पर भी सवाल लगने लगते हैं। समय पर भर्तियां होने के लिए सरकार को अपने स्तर पर प्रबंध करना चाहिए। प्रदेश में ज्यादातर भर्ती परीक्षाओं के नतीजे अदालतों में भी अटक जाते हैं। भर्ती प्रक्रिया को लेकर एक समयबल कार्यक्रम होना चाहिए ताकि बेरोजगारों को निश्चित समय सीमा में नियुक्ति मिल सकें।

राज्य कर्मचारी चयन बोर्ड के अध्यक्ष बीएल जाटावत का कहना है कि जो परीक्षाएं हो चुकी हैं उनके परिणाम जारी होने की प्रक्रिया चल रही है। परिणाम जारी करने में पूरी तरह से कानूनी प्रावधानों का पालन किया जाता है। बोर्ड की कोशिश रहती है कि उसकी निष्पक्षता पर कोई सवाल खड़ा नहीं हो, इसलिए पूरी तरह से जांच परख कर ही परिणाम जारी किया जाता है।