राजस्थान में कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाली यौन हिंसा का कानून तो लागू हो गया पर उसकी पालन कारगर तरीके से नहीं हो पा रहा है। इस कानून में कमेटियां तो बन गर्इं पर ज्यादातर कागजों में ही सिमटी हुई हैं। महिलाएं अपने खिलाफ होने वालीं अभद्र टिप्पणियों और छेड़छाड़ जैसी शिकायतें इन कमेटियों में करती है तो उनके निस्तारण और नतीजे की जानकारी तक उनके पास नहीं पहुंचती है। महिला संगठनों का कहना है कि कानून तो कारगर है पर उसके पालन में कमियां सामने आ रही हैं। इस कानून के पालन और निगरानी का काम प्रदेश का महिला व बाल विकास विभाग करता है पर यह महकमा सिर्फ सरकारी विभागों और निजी कंपनियों को एक परिपत्र जारी कर खानापूरी ही करता है। कानून पर अमल के बारे में सरकार की गंभीरता नहीं होने से ही कार्यस्थल पर महिलाएं बड़ी संख्या में उत्पीड़न का शिकार हो रही है।
केंद्र सरकार के वर्ष 2013 में संसद से पास कानून के तहत प्रदेश में लाखों दफ्तर होने के बाद भी महिला व बाल विकास विभाग के पास सिर्फ 1450 कमेटियां बनी हैं। कमेटियां बनाने वाले प्रतिष्ठानों को इसकी सूचना सरकार के महिला बाल विकास विभाग को देना जरूरी है। इससे ही साफ हो जाता है कि हजारों सरकारी और गैरसरकारी प्रतिष्ठान इस कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। महिला संगठनों का तो कहना है कि जो 1450 कमेटियां बनी हुई बताई जा रही हैं उनमें से भी ज्यादातर सिर्फ कागजों में ही है।
प्रदेश में इस कानून के पालन में शर्मनाक स्थिति सामने आई है। इसके अनुसार पांच साल में सिर्फ 1450 कमेटियां की बन पाई हैं। जिला स्तर पर 33 स्थानीय समितियों का गठन हुआ है। इनमें से अधिकतर के पास अभी तक शिकायतों का अभाव है और इन्होंने कोई बैठक कर महिलाओं के प्रति किसी भी तरह की जागरूकता का काम भी नहीं किया। प्रदेश में बनी 1450 कमेटियों में पांच साल में सिर्फ 44 शिकायतें ही दर्ज हुई हैं। इनमें से 38 शिकायतें स्थानीय कमेटियों ओर छह शिकायतें आंतरिक कमेटियों में आई हैं। विभाग के अनुसार 38 में से 34 और छह में से पांच शिकायतों का निस्तारण हो गया है।
कार्यस्थल पर यौन हिंसा को लेकर बनाए गए कानून का पालन राजस्थान में बड़ा लचर है। शिकायत कमेटियां विभाग या निजी प्रतिष्ठान अपने स्तर पर बनाते हैं। कमेटियां बनी या नहीं, उसमें कौन-कौन शामिल हैं इसकी जानकारी तक महिला कर्मचारियों को नहीं होती है। इसके साथ ही शिकायतों का निस्तारण होने को लेकर निगरानी की भी कोई व्यवस्था नहीं है। आंतरिक कमेटी से असंतुष्ट होने पर उसमें आगे अपील के बारे में भी एक्ट में कोई साफ निर्देश नहीं है। माथुर का कहना है कि कानून के पालन के लिए सरकार को इसकी नियमित निगरानी की व्यवस्था करनी चाहिए, तभी महिलाएं इस बारे में खुल कर शिकायतें दर्ज करा सकेंगी।
-दीपा माथुर, सामाजिक कार्यकर्ता
सरकार समय-समय पर विभागों को इस बारे में चेताती रहती है। शिकायतों का निपटारा प्रशासन और पुलिस की मदद से किया जाता है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में कमेटियां बनी हुई है। सरकार की तरफ से हर छह महीने में सभी विभागाध्यक्षों और जिला कलेक्टरों से शिकायतों की जानकारी जुटाई जाती है। इसके साथ ही महिला बाल विकास विभाग कानून को लेकर जागरूकता के लिए जिला और प्रदेश स्तर पर कार्यशालाएं आयोजित करता है। कानून के पालन में कहीं ढिलाई की जानकारी सामने आती है तो संबंधित संस्थान पर कार्रवाई का भी प्रावधान भी है।
-सुमन शर्मा, राज्य महिला आयोग की निवर्तमान अध्यक्ष