बिहार, पंजाब के बाद अब राजस्थान में भी शराबबंदी की मांग उठने लगी है। लेकिन पूरे प्रदेश में शराब को बंद करना सरकार के लिए इतना आसान नहीं होगा। दरअसल, शहरी इलाकों को छोड़कर रेगिस्तानी इलाकों में शराब का कारोबार कुटीर उद्योग के रूप में फल-फूल रहा है। यहां के लोग आर्थिक रुप से पर्यटकों और शराब के कारोबार पर निर्भर है। आलम ये है कि यहां हर घर में चूल्हे पर शराब बनती हुई दिखाई पड़ जाती है। यहां के लोग इन शराब को बेचकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, जैसलमेर के भणियाणा इलाके के फलसूंड सहित दर्जनों गांवों में कच्ची शराब बनाने और बेचने का अवैध धंधा कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है। यहां स्थित होटलों में कच्ची शराब की मांग ज्यादा होने के कारण इसकी आपूर्ति और बढ़ गई है। गांव के अधिकांश लोग हथकढ़ (कच्ची) शराब को बेचकर अपने परिवार का गुजारा करते हैं। यहां शराब की मांग इतनी बढ़ गई है कि घरों से कई होटलों और कई नगर-कस्बों में पहुंचाई जाती है।
हालांकि, शहरी क्षेत्रों में अवैध शराब के कारोबार पर रोक है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। क्षेत्र के फलसूंड, मानासर, राजमथाई, रावतपुरा और नेतासर आदि गांवों में जिस चूल्हे पर खाना बनता है उसी पर शराब भी तैयार होती है और फिर बोतलों में भरकर सप्लाई की जाती है।
गुड़, हरड़ को मिट्टी के बर्तन में भिगो के बनती है शराब
कच्ची शराब को बनाने के लिए स्थानीय लोग गुड़, हरड़, सौंफ, हल्दी का उपयोग करते हैं। गुड़ और हरड़ को 10 दिन तक मिटी के बर्तन में भिगो कर रखते हैं और उसके बाद उस पानी को एक चूल्हे पर चढ़ा कर शराब बनाते हैं। शराब बनने के बाद उसमें सौंफ और हल्दी डाल कर कलर दे देते हैं
अंग्रेजी शराब के मुकाबले सस्ती है
यह शराब की बोतल 60 रुपए की दर से बिकती है। इसकी डिमांड अधिक होने के कारण ये उपखण्ड के होटलों पर भी पहुंचने लगी है। अंग्रेजी शराब के मुकाबले सस्ती होने की वजह से कच्ची शराब का बाजार बढ़ता जा रहा है और इन गांवों का कुटीर उद्योग भी।

