‘गैय्या लागे भगवती, ग्वाला कृष्ण स्वरूप।
इन आँखासु देखणो, फेर भारत में ओ रूप।।’
दिल को छू लेने वाला यह श्लोक राजस्थान के नागौर जिले से 7 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर बने विश्वस्तरीय गौ चिकित्सालय के मुख्य द्वार पर लगे बैनर पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा है। आपने भी देश के अलग-अलग हिस्सों में गौशाला जरूर देखी होगी, मगर गौ चिकित्सालय वह भी निजी तौर पर और उपचार भी बिल्कुल मुफ्त, शायद ही कहीं देखा होगा। राजस्थान के बीकानेर से उदयपुर जाने के रास्ते नागौर-जोधपुर सड़क एनएच 65 पर गाय का अस्पताल देखकर हमने अपनी बस रुकवाई। बस रुकते ही वहां हरे रंग की ड्रेस पहने सेवादार हाथों में चाय का थर्मस और कप लिए हमारे पास आए और चाय पीने का आग्रह करने लगे। पानी पीने का इंतजाम भी बढ़िया। सब मुफ्त। हैरत की बात कि यह आव भगत हरेक रुकने वाले वाहन के मुसाफिरों के लिए है। आपकी मर्जी दान दीजिए या नहीं। कोई जोर जबरदस्ती नहीं। यह अस्पताल श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर स्वामी कुशालगिरी जी महाराज की देखरेख में चलता है। सरकार से कोई मदद नहीं मिलती। दाताओं के दान, चंदे से या फिर स्वामीजी के घूम-घूम कर कथा और मानस प्रवचन से मिले चढ़ावे से ही यह अस्पताल चलता है। जिनके मन में गौ माता के प्रति श्रद्धा है और दान देना चाहते हैं उन्हें नागौर जाना चाहिए क्योंकि गौशाला में दान देकर दूध का फायदा तो मिल सकता है मगर बीमार गायों की सच्ची सेवा का मौका शायद ही मिल सकता है।
यहां का यह अस्पताल अपने आप में अजूबा है। यहां 21 एम्बुलेंस हैं, जिनका काम 300 किलोमीटर के दायरे से बीमार, घायल गायों या सांडों को यहां इलाज के लिए लाना है। लावारिस हो या निजी सभी की सेवा में ये एम्बुलेंस लगे हैं। खटाल में कैंसर से पीड़ित, पैर कटी, सींगों पर जख्म, पांच पैर वाली मसलन तरह-तरह की बीमारियों से पीड़ित गाय और सांड की देखभाल और इलाज इस कदर शायद ही कहीं देखने को मिले। पशु चिकित्सकों और कमांडरों की टीम सुबह से शाम तक गौसेवा में लगी रहती है। जैसे उनका मकसद पैसा नहीं सिर्फ सेवा है। दिलचस्प बात यह भी है कि स्वस्थ हो जाने के बाद गायों, सांडों को वापस उसी स्थान पर पहुंचाया जाता है, जहां से उन्हें लाया गया था। इतना ही नहीं यदि कोई अपनी निजी बीमार गाय इलाज करवाने यहां लाता है तो तत्काल स्वस्थ गाय बदले में उन्हें दी जाती है। चिकित्सालय के सेवादार सुनील बिश्नोई बताते हैं कि यहां का एक रोज का खर्च सवा चार लाख रुपए है।

अस्पताल में आधुनिक ऑपरेशन थियेटर है जहां गायों और सांडों का जरुरत के मुताबिक ऑपरेशन होता है। बीमार गोवंश की दवाइयों का खर्च हरेक महीने 9 लाख रुपए का है। पौष्टिक आहार का खर्च भी करीब 9 लाख प्रति महीना है। पशु एम्बुलेंस का खर्च 5 लाख आता है। यह तो मोटामोटी खर्च का हिसाब है। सैकड़ों बीमार गायें और सांड खटाल में खड़े या बैठे हैं मगर गंदगी के नाम पर गोबर तो क्या एक कंकड़ तक नजर नहीं आता। मसलन, सफाई देखते ही बनती है। स्वच्छता का पूरा ध्यान है। कई गाय और सांड तेजाब और बन्दूक के छर्रे से जख्मी दिखी। कुछ बेरहम लोग इन पर तेजाब फेंक देते हैं। कुछ प्लास्टिक के थैली खाकर बीमार हुए, नतीजतन ऑपरेशन करना पड़ा। इतना ही नहीं यहां कछुआ, कबूतर, चील, हिरण, लववर्ड जैसे वन्य जीवों का भी उपचार किया जाता है। इनके लिए अलग-अलग जालीदार घर बने हैं। इनकी देखभाल में टीम चौबीस घंटे लगी है।
नोटबंदी का शिकार यह अस्पताल भी हुआ है। दान देने की कमी की वजह से निर्माणाधीन टिन शेड का काम रुका पड़ा है। अफवाहों की वजह से 10 रुपए के सिक्के काफी मात्रा में जमा पड़े हैं। वहां के सेवादार बताते हैं कि दुकानदार सिक्के लेना नहीं चाहते। जाहिर है ऐसे अस्पताल के विस्तार के लिए और अधिक धन की जरूरत है। यह काम समाज के उदार मन वाले लोगों और धनी लोगों की कृपा दृष्टि पर निर्भर करता है। दूसरी तरफ जब उदयपुर की पन्नालाल माहेश्वरी धर्मशाला की दुर्दशा देखी तब लगा कि इनके बेटे-पोतों के लिए यह मोटी कमाई का जरिया भर है। गंदगी और बदइंतजामी के बाबजूद कमरे का किराया 500 रुपए प्रतिदिन है। यानी होटल के बराबर किराया। लूट की छूट ट्रस्ट और धर्म के नाम पर जारी है। इसके ट्रस्टी गिरीश माहेश्वरी की शानो शौकत देखकर लगता है कि वो सब धर्मशाला के भरोसे ही है। उन्हें अव्यवस्था की शिकायत की गई मगर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। शायद उन्होंने समझा होगा कि मुसाफिर तो आते हैं और चले जाते हैं और यह सिलसिला धर्मशाला क्या पूरी देश-दुनिया का ही है। परंतु शायद उन्हें नहीं मालूम कि कुछ काम, कुछ मुकाम ऐसे होते हैं जो लोग सालों-साल याद रखते हैं। कुछ को उसकी बेहतरी के लिए और कुछ हो उसकी बदतरी के लिए, उसी का एक हिस्सा है नागौर का गौ चिकित्सालय और उदयपुर की पन्नालाल धर्मशाला।