राजधानी में निर्भया कांड के दोषी किशोर को छोड़ने या न छोड़ने पर बहस के बीच एक अबोध बच्ची एक और किशोर की दरिंदगी का शिकार हो कर जिंदगी और मौत से जूझ रही है। सोमवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग के प्रतिनिधियों ने अस्पताल पहुंच कर पीड़ित बच्ची और उसके परिजनों से बात की, जबकि दिल्ली महिला आयोग ने इलाज में देरी के लिए एम्स प्रशासन को सोमवार को नोटिस जारी किया है।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल ने सोमवार को एम्स को नोटिस जारी किया। माली वाल ने एम्स को भेजे नोटिस में कहा है कि आयोग की रेप क्राइसिस सेल को सात साल की बच्ची से बलात्कार की सूचना मिलने के बाद जब एम्स में जाकर बच्ची से मुलाकात की तो पाया कि साढ़े आठ बजे से लेकर बारह बजे तक उसका इलाज शुरू नहीं किया गया जबकि बच्ची को काफी गंभीर हालत में लाया गया था। उसे तेज रक्तस्राव हो रहा था। बावजूद इसके सुनवाई न होना चिंताजनक है। यहां तक कि उसे प्राथमिक उपचार तक नहीं दिया गया। जांच अधिकारी और आयोग के क्राइसिस सेल ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी से 11 दिसंबर को लिखित शिकायत भी की है। उन्होंने लिखा है कि जब हम 13 दिसंबर को मामले के पीड़ितों से मिलने गए और शिकायत के बारे में पूछा तो हमें ड्यूटी अफसर ने बताया कि इस मामले में महिला रोग विभाग की अध्यक्ष से लिखित जवाब मांगा गया है।
आयोग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एम्स प्रशासन से इस बारे में की गई कार्रवाई का ब्योरा मांगा है। आयोग ने जवाब के लिए 48 घंटे का समय दिया है। जवाब न आने पर आयोग अपने कानून के मुताबिक कार्रवाई करेगा। पहले काफी जद्दोजहद के बाद एम्स के ट्रोमा सेंटर में बच्ची को भर्ती किया गया। बाद में दिल्ली महिला आयोग की ओर से दखल देने के बाद बच्ची को ट्रोमा सेंटर से एम्स के मुख्य परिसर में लाया गया और यहां के पिडियाट्रिक सर्जरी वार्ड में भर्ती किया गया।
एम्स में हंगामे के बाद पीड़ित बच्ची को भर्ती कर आपरेशन तो कर दिया गया पर बच्ची के और परिजनों की पीड़ा का इलाज कहां होगा, वे नहीं जानते। दर्द और आंसू भरी आंखों से वह एक ही सवाल करते हैं कि हमारी बच्ची को इस हाल में पहुंचाने वाले के दरिंदों का क्या इलाज होगा? बच्चियां घर में, पार्क में, स्कूल में कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, हम कहां जाएं? बच्ची के सिरहाने बैठी और उसे बातों में लगाने और उसका सदमा कम करने की कोशिश करती उसकी मौसी ने सिर्फ यही पूछा। उन्होंने कहा कि वे(बलात्कारी)कई थे। कम से कम तीन लोग।
यहां के एबी पांच वार्ड में भर्ती पीड़ित बच्ची के परिजनों को किसी से मिलने नहीं दिया जा रहा है। उन पर निगरानी रखी जा रही है। जैसे ही बाल अधिकार आयोग के लोग आए और बच्ची के परिजनों से कुछ पूछने लगे तो डाक्टरों ने उन्हें वहां से चले जाने को कह दिया। बच्ची को कितनी चोट आई है या क्या यह गैंग रेप है यह बताने में असमर्थता जताते हुए चिकित्सा अधीक्षक डा डीके शर्मा ने कहा कि यह तो केवल पुलिस और जांच एजंसी को बताया जा सकेगा पर यह साफ है कि उसके शरीर के अंदरुनी हिस्से में चोट आई है। अभी बच्ची की हालत स्थिर है। उसका एक बार आपरेशन किया गया है। जरूरत पड़ी तो दुबारा आपरेशन किया जाएगा।
बाल सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डा डीके गुप्ता की निगरानी में पाड़ित बच्ची को भर्ती किया गया है। एक कपड़े से चेहरा ढंके इस वार्ड में लेटी बच्ची के आस पास के बिस्तरों पर भर्ती दूसरे बच्चों के परिजनों और इलाज में लगे कर्मचारियों को भी बच्ची पर हुए जुल्म का दुख है। यह साफ दिखता है। यहां जैसे ही कोई इस भयावह घटना का जिक्र करता है वे एक साथ इस तरह के अपराध करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करने लगते हैं। वे निर्भया कांड के दोषी किशोर को भी 20 तारीख को छोड़े जाने का विरोध करने से भी नहीं चूकते।
निर्भया कांड की बरसी के दो दिन बचे हैं। निर्भया के साथ की गई सामूहिक हैवानियत और बर्बर बलात्कार कांड के सिहरन से भर देने वाली यादें अभी लोगों के जेहन से गायब भी नहीं हुई है कि तीन दिन के भीतर राजधानी में दो मासूमों को हैवानियत का शिकार बनाए जाने की घटनाओं ने वह घाव फिर से हरा कर दिया है। 16 दिसंबर के बाद उमड़े आंदोलन और तब सरकार और अदालत के रुख से लगा था कि अब तो कुछ सूरत बदलेगी। लेकिन बदला कुछ नही है। बलात्कार के मामलों से एक बार फि र दिल्ली थर्रा उठी है।