जुलाई 2016 में बंद हुआ सफदरजंग अस्पताल का रेडियो थेरेपी विभाग अभी तक शुरू नहीं हो पाया है और न ही इसके आसार नजर आ रहे हैं। सरकारी महकमा नौ दिन चले ढाई कोस की रफ्तार से काम कर रहा है। अभी तक अस्पताल को जरूरी संख्या में फिजिसिस्ट तक नहीं मिले हैं। विभाग में नई मशीनों की खरीद का मामला फिलहाल पूरा हो चुका है और पुरानी मशीन के बचे हुए रेडियोधर्मी अवशेषों को नष्ट करने के लिए भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर को लिखा गया है। अस्पताल प्रशासन ने दो महीने में विभाग शुरू होने की उम्मीद जताई है। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर एके राय ने कहा है कि हम विभाग को फिर से तभी शुरू कर पाएंगे, जब हमारे पास फिजिसिस्ट होंगे और पुरानी मशीनें डिस्पोज आॅफ हो जाएंगी। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई है कि अगले दो महीने में विभाग फिर से शुरू हो जाएगा। उन्होंने बताया कि गुरुवार को परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के प्रतिनिधि आए थे। उन्होंने सोर्स का मुआयना कर जरूरी दिशानिर्देश दे दिए हैं। इसके आधार पर एईआरबी की ओर से अधिकृत कंपनियों को निविदा जारी की गई है। जैसे ही पुरानी मशीनें डिस्पोज आॅफ होंगी, परमाणु सुरक्षा मामलों के जानकार यहां की विश्लेषण रिपोर्ट देंगे और विभाग फिर से शुरू कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि हमारे लिए एआरएसओ के तीन पद आबंटित थे, जो नहीं भरे जाने की वजह से संपदा विभाग ने खारिज कर दिए थे। उन्हें बहाल करने के लिए नए सिरे से फाइल आगे बढ़ाने, पद आबंटित कराने और भरने के लिए जरूरी प्रक्रिया में समय लग रहा है।
बीते साल जुलाई में अचानक यह विभाग बंद होने से कैंसर के सैकड़ों मरीजों के सामने जीवन का संकट पैदा हो गया। विभाग बंद होने से मरीजों की रेडियो थेरेपी बीच में ही छूट गई। इलाज के लिए मरीजों को दूसरे अस्पताल जाने को कह दिया गया। मजबूरी यह है कि वे जहां भी जाएंगे उनका इलाज समय से शुरू नहीं हो पाएगा क्योेंकि इलाज के लिए मशीन व दवा की खुराक तैयार होने की प्रक्रिया फिर से शुरू करनी पड़ेगी। इसके अलावा इलाज की मशीन या दवा बीच में बदलने से इलाज के नतीजे में भी फर्क आ जाता है। सफदरजंग में रेडियो थेरेपी का इलाज शुरू करा चुके मरीजों तक को विभाग ने आगे का इलाज देने से मना कर दिया है। आमतौर पर सफदरजंग में रेडियो थेरेपी के लिए वही मरीज आता है जो निजी अस्पताल में इलाज का खर्च वहन नहीं कर सकता या जिसकी एम्स या दूसरे अस्पताल में पहुंच नहीं है। कैंसर की सर्जरी या कीमोथेरेपी कराने वाले मरीज मशीन फिर से चालू होने की उम्मीद में रोज सफदरजंग अस्पताल के चक्कर लगा रहे हैं। ईएनटी के एक मरीज शरन (बदला नाम) ने बताया कि उनक ा आॅपरेशन तो हो गया, लेकिन यहां रेडियो थेरेपी नहीं होने के कारण उनको बाहर से यह थेरेपी करानी पड़ेगी, जोकि काफी महंगी है। कुछ रसूखदार मरीज एम्स में यह थेरेपी ले पा रहे हैं, लेकिन गरीब और साधारण लोगों के लिए यह खासा मुश्किल है। वहीं हर अस्पताल की मशीन या दवा का प्रोटोकॉल भी अलग होता है। उन्होंने बताया कि रेडियो थेरेपी में एक्स-रे व गामा की हल्की खुराक कई चरणों में दी जाती है, ताकि कैंसर सेल तो मर जाए, लेकिन मरीज के स्वस्थ अंगों को विकिरण से ज्यादा नुकसान न पहुंचे।
सफदरजंग अस्पताल के रेडियो थेरेपी विभाग में रोजाना करीब 25-30 मरीजों का पंजीकरण होता है और हफ्ते भर में करीब 120 मरीजों को यहां इलाज दिया जाता रहा है, लेकिन नवंबर 2015 में अस्पताल के इस विभाग को बंद कर नए मरीज भर्ती नहीं करने का निर्देश दिया गया था। ऐसा रेडियो थेरेपी के लिए लाइसेंस की नवीनीकरण प्रक्रिया में कमी रह जाने की वजह से हुआ था। बाद में जुलाई 2016 में यह विभाग अचानक सील कर दिया गया। इसे चलाने के जरूरी मानक पूरे नहीं होने की वजह से भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर ने इसे सील कर दिया। विभाग की तीन पुरानी मशीनों में दो पहले ही खराब पड़ी थीं और किसी तरह एक मशीन से काम चलाया जा रहा था, लेकिन अब वह भी कबाड़ हो चुकी है। डॉक्टर एके राय ने बताया कि इन मशीनों मे रेडियोधर्मी पदार्थ रहते हैं, जिससे विकिरण का खतरा होता है। उसका कुछ हिस्सा इन कंटेनरों में बचा रह जाता है। इसलिए इसे सही से नष्ट करने की दरकार होती है। इस काम को अंजाम देने के लिए निविदा प्रक्रिया निकाली गई है।
आरएसओ फिजिसस्ट की संख्या कम होने की वजह से ही पिछले साल नवंबर 2015 में परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी) ने थेरेपी पर रोक लगाई थी। इस मामले में संसद में सवाल उठने पर सरकार ने लिखित जवाब में कहा था कि एईआरबी की ओर से मंजूर आरएसओ नहीं होने की वजह से विभाग को बंद कर दिया गया था, लेकिन सरकार ने इन पदों को मंजूर कर दिया है। इसके बाद 11 दिसंबर 2015 को विभाग फिर से चालू कर दिया गया, लेकिन संपदा विभाग ने यह कह कर फाइल लौटा दी है कि तीन साल तक भर्ती नहीं होने की वजह से ये तीनों पद खारिज हो चुके हैं। इसके बाद जुलाई 2016 से विभाग पूरी तरह बंद है।

