दिल्‍ली हाईकोर्ट ने सोमवार को तलाक से जुड़े एक मामले में कहा कि रोका एक सामाजिक बुराई है। कोर्ट ने यह टिप्‍पणी एक महिला की फैमिली कोर्ट से मिले तलाक की डिक्री के खिलाफ दायर अपील पर फैसले के दौरान की। रोका सगाई से पहले का एक समारोह होता है जिसमें गिफ्ट और पैसे दिए जाते हैं जिससे यह निश्चित किया जा सके कि लड़का और लड़की शादी के राजी हैं। जस्टिस प्रदीप नंद्राजोग और जस्टिस प्रतिभा रानी की बैंच ने निर्दयता और परित्‍याग के आधार पर दिए गए तलाक को खारिज कर दिया। उन्‍होंने माना कि तलाक की कई याचिकाओं में बातें बढ़ा-चढ़ाकर कही जाती है और संभवतया ऐसा इस भावना से किया जाता है कि जब त‍क साथी को बदनाम नहीं किया जाएगा तलाक मिलना मुश्किल है।

पति ने कोर्ट में कहा था कि रोका की रस्‍म के बाद उसकी पत्‍नी शिकायत करने लगी कि उसे पर्याप्‍त उपहार नहीं मिले। साथ ही उसने ससुराल पक्ष व उनकी कमाई पर कलंक भी लगाया। महिला ने इन आरोपों से इनकार किया। रोका का जिक्र करते हुए कोर्ट ने माना, ”दंपती के साथ गुलामों जैसा व्‍यवहार किया जाता है। इससे यह होता है कि लड़की के परिवार की ओर से लड़के के परिवार को दिए जाने वाले पैसों के जरिए समाज को यह बताया जाता है कि उसके जीवनसाथी की तलाश पूरी हो गई है। यह सामाजिक बुराई है जिसकी निंदा की जानी चाहिए। इसमें कई बार बेवजह खर्चा मांगा जाता है और कई मामलों में तो भविष्‍य में इसके चलते कलह होती है। एक जज को इससे कोई मतलब नहीं कि पहले क्‍या हुआ था। लेकिन हमें लगता है कि हरेक मामले में रोका के दिन से ही विरोधी पक्ष पर आरोप लगाए जाते हैं।”

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इस दंपती की शादी नवंबर 2006 में हुई थी और 2007 में दोनों के बच्‍चा हो गया। आरोप है कि पत्‍नी ने अप्रैल 2008 में ससुराल छोड़ दिया। इसके बाद साल 2013 में निर्दयता और परित्‍याग के आधार पर पति ने तलाक मांगा जो उसे मिल गया। इस पर महिला ने 2013 में हाईकोर्ट में अर्जी लगाई। कोर्ट ने माना कि इस मामले में ना तो कोई निर्दयता हुई और ना परित्‍याग हुआ।

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