कालेधन पर रोक लगाने की उम्मीद से लागू हुई नोटबंदी का नकारात्मक प्रभाव दिल्ली एनसीआर समेत उत्तरी भारत के सबसे बड़ी रियल एस्टेट कारोबार की मंडी नोएडा- ग्रेटर नोएडा पर सामने आने लगा है। डिजिटल क्रांति की पहल से पूरी तरह से अनछुए रीयल एस्टेट और संपत्ति कारोबार को नोटबंदी से दोतरफा नुकसान उठाना पड़ा है। पहला यह कि नोटबंदी के दौरान संपत्ति की खरीद-फरोख्त पूरी तरह से ठप पड़ गई। 50 दिनों की नोटबंदी के दौरान संपत्ति की खरीद फरोख्त में तकरीबन 250 फीसद की गिरावट दर्ज हुई। जबकि नोटबंदी के बाद करीब दो महीनों के भीतर बमुश्किल 20-25 फीसद का उठान आया है। दीगर है कि जिन प्रॉपर्टी की नोटबंदी के दौरान या उसके बाद रजिस्ट्री हो रही है, वे सभी सौदे तकरीबन 4-6 महीने पहले तय हो चुके थे। जिन्हें जैसे-तैसे निपटाया जा रहा है।
दूसरा असर यह पड़ा है कि नोटबंदी के कारण कीमतों में गिरावट का फायदा सरकार के बढ़े हुए राजस्व में 1 फीसद भी तब्दील नहीं हुआ है। यानी संपत्ति खरीद-फरोख्त में करोड़ों रुपए के नकद में लेनदेन (कालाधन) ज्यों का त्यों बना हुआ है। कारोबारियों का मानना है यह केंद्र और राज्य सरकार के अधीन दो महकमों की खींचतान का नतीजा है। जिसकी वजह से वास्तविक फायदा न तो सरकार के राजस्व तक पहुंच रहा है। और न ही अपनी जरूरत के हिसाब से सस्ते में मकान या भूखंड खरीदने वालों तक। संपत्ति से जुड़ी पूरी खरीद-फरोख्त सफेद धन (नंबर-1) से या डिजिटल जरिए से करने का नोटबंदी से कतई फर्क विक्रेता या क्रेता, किसी पर भी नहीं पड़ा है।
नोएडा के रिहायशी सेक्टरों का प्राधिकरण के आबंटन कीमत के लिहाज से वर्गीकरण किया गया है। प्राधिकरण की कीमत के आधार पर ही रजिस्ट्री कराने का सर्कल रेट (जिस कीमत पर स्टांप देय है) तय किया गया है। सबसे महंगे सेक्टरों में शामिल सेक्टर- 15ए, 44, 50, 51 आदि का वर्ग ए में प्राधिकरण की आबंटन दर 92950 रुपए/मीटर है। जबकि इन सेक्टरों की सर्कल दर 103500 रुपए/मीटर है। चूंकि इन सेक्टरों में कई सालों पहले ही आबंटन हो चुके हैं। लिहाजा दोबारा बिक्री (री-सेल) में ही खरीद- फरोख्त हो रही है। खास बात यह है कि हर भूखंड की रजिस्ट्री होने के साथ ही उसकी सूचना आयकर विभाग को देनी जरूरी कर दी गई है।