दिल्‍ली में दो महिलाएं कोमा में गए एक शख्‍स की बीवी होने का दावा कर रही हैं। दिल्‍ली हाईकोर्ट ने एक महिला को उस व्‍यक्ति के साथ उसके घर में रहने, तथा दूसरी को हर सप्‍ताह एक घंटे के लिए मिलने का अधिकार सौंपा है। कोर्ट ने कहा कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि व्‍यक्ति की कानूनी पत्‍नी कौन है, यह प्रक्रिया जारी रहेगी। दिल्‍ली हाईकोर्ट ने यह फैसला एक महिला की याचिका पर सुनाया था। उसने एक दूसरी महिला और उसके पति पर आरोप लगाया था कि दोनों ने मिलकर हास्पिटल से रिलीज किए गए उसके पति को ‘गैरकानूनी ढंग से बंधक’ बना लिया। habeas corpus याचिका के तहत व्‍यक्ति को अदालत के सामने प्रस्‍तुत करना जरूरी है।

याचिका को मंजूर करते हुए जस्टिस जीएस सिस्‍तानी और संगीता ढींगरा की बेंच ने पुलिस रिपोर्ट मंगाई। अदालत को बताया गया कि व्‍यक्ति उत्‍तम नगर के एक घर में रहता है। पुलिस ने कहा कि घर में मौजूद महिला उसकी पत्‍नी होने का दावा कर रही है। चूंकि व्‍यक्ति कोमा में है इसलिए वह अपने पति का ध्‍यान रखती है। इस पर बेंच ने उस महिला और उसके बेटे को कोर्ट में उपस्‍िथत होने का आदेश दिया। अदालत के सामने मां ने बताया कि वही कानूनी रूप से व्‍यक्ति की पत्‍नी है।

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उनके वकील ने कहा कि व्‍यक्ति को इलाज के लिए अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था। अगर याचिकाकर्ता ने इस व्‍यक्ति से शादी भी की है तो भी वह हिंदू मैरिज एक्‍ट के तहत गैरकानूनी शदी है। इस पर याचिकाकर्ता ने मां-बेटे के दावों पर सवाल खड़े किए और कहा कि वही व्‍यक्ति की कानूनी पत्‍नी है। उस महिला ने दोनों पर व्‍यक्ति को हॉस्पिटल से गायब करने का आरोप लगाया। याचिकाकर्ता ने सप्‍ताह में एक बार व्‍यक्ति से मिलने का अधिकार दिए जाने की भी मांग की।

व्‍यक्ति के कोमा में होने की वजह से बेंच दोनों महिलाओं के दावे की पुष्टि नहीं कर सकी। एक समझौते के तहत बेंच ने याचिकाकर्ता को सप्‍ताह में एक बार एक घंटे के लिए व्‍यक्ति से मिलने का आदेश्‍ा दिया जिसमें मां-बेटे कोई हस्‍तक्षेप नहीं करेंगे।

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मामले की सुनवाई को 21 जुलाई तक के लिए स्‍थगित कर दिया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगली सुनवाई तक यही समझौता लागू रहेगा।