कोरोना महामारी के इस दौर में जब संसद के सत्र स्थगित होते रहे तो ऐसे में ‘जनता संसद’ के आयोजन से कोविड के दौरान की स्थिति और समस्याओं से निपटने की रणनीति दोनों उभर के आए। इतना ही नहीं इसकी सिफारिशों पर विपक्षी दलों ने चर्चा की। जनता संसद की सिफारिशों ने मानों संसद के मानसून सत्र की राह दिखा डाली। विपक्ष के तमाम दलों व सांसदों ने इसकी सिफारिशों की सराहना की।
बता दें कि देश के कई नागरिक संगठनों ने स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, कृषि, शिक्षा, पर्यावरण, श्रम कानून व रोजगार, अर्थव्यवस्था सहित 10 क्षेत्रों पर व्यापक विमर्श के लिए छह दिनों तक ‘जनता संसद’ का आयोजन कर एक सुझाव पत्र जारी किया है। इस जनता संसद के आयोजकों में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीज, मजदूर किसान शक्ति संगठन, माध्यम, जनस्वास्थ्य अभियान, शिक्षा का अधिकार अभियान, ऑल इंडिया किसान सभा, सहित कई नागरिक संगठन शामिल हैं। हर दिन दो सत्र व दो मुद्दों पर बहस हुई जिसमें संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञ, पर्यावरणविद, अर्थशास्त्री आदि ने शिरकत की। अरुणा रॉय ने कहा-ऑनलाइन जनता संसद कोविड काल का एतिहासिक कदम रहा। विभिन्न सत्रों में लगभग 250 वक्ताओं के साथ 43 घंटे की चर्चा हुई। इसमें सौ से अधिक संकल्प लिए गए। सोशल मीडिया पर एक लाख से अधिक लोग जुड़े। संसद के आगामी मानसून सत्र में उठाए जा सकने वाले मुद्दों को सामने लाया गया। इसकी सिफारिशों पर कई दलों को शीर्ष नेताओं की सटीक प्रतिक्रया दी।
दरअसल, हफ्ता भर चलने वाली जनता संसद की सिफारिशों पर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के बीच तीन घंटे मंथन चला। फिर विचार दिए।
राजनीतिक दलों से मिला समर्थन
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी का कहना है कि व्यापक एकता बनाने के लिए इसमें आए एक सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम विकसित करने का सुझाव बहुत अच्छा है। उन्होंने कहा- वे सरकार से इसकी सिफारिश करेंगे। कांग्रेस के के.राजू ने कहा-यह काम संसद करे और इसके लिए विपक्ष को एक साथ लाना होगा। भाकपा के राष्ट्रीय सचिव डी राजा ने कहा कि आंबेडकर ने संसद की राष्ट्र की संप्रभुता की अभिव्यक्ति के रूप में कल्पना की थी और इसे कम नहीं किया जाना चाहिए। राजद के सांसद मनोज झा ने कहा-राष्ट्रीय और जन संसद के मुद्दे जमीनी हैं। ‘आप’ के सांसद संजय सिंह ने कहा कि इससे जमीनी मुद्दे उभर कर आए। लोकसभा अध्यक्ष पैनल के सदस्य कोडिकुन्निल सुरेश ने भी राय दी।
