काश मेरी पत्नी जिंदा होती, भले ही वील चेयर पर रहती, मैं उसकी सेवा करता, कम से कम वो मेरे सामने तो होती। काश मैं आॅपरेशन कराने, कूल्हा लगवाने के डॉक्टर की सलाह नहीं मानता…। गाजीपुर गांव निवासी बसल वर्मा ने बिलखते हुए ये बातें कहीं। वर्मा के मुताबिक, उनकी पत्नी की मौत डॉक्टरों की लापरवाही से हुई है। उन्होंने आरोप लगाया कि डॉक्टर ने उनकी पत्नी का कूल्हा बदलने के एवज में उनसे मोटी रकम वसूली लेकिन उनके शरीर में कौन सा इंप्लांट लगाया, वह कितने का था इस सबके बारे में और पूरे इलाज के दौरान बिगड़ती स्थिति को लेकर उन्हें अंधेरे में रखा। वर्मा ने पत्नी की मौत के लिए डॉक्टर संजीव त्रिपाठी सहित कई अन्य डॉक्टरों को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके खिलाफ इंडियन मेडिकल काउंसिल, दिल्ली मेडिकल काउंसिल, उपभोक्ताअदालत सहित संबंधित निकायों से शिकायत की है। दिल्ली मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉक्टर गिरीश त्यागी ने कहा है कि उनके पास शिकायत तो आई है। पर अभी तक उनके पास पूरा ब्योरा नहीं था, वह आने पर विस्तृत जांच कर जरूरी कार्रवाई की जाएगी।
गाजीपुर गांव के गली नंबर चार के मकान नंबर बी 212 में रहने वाले बसल वर्मा ने बताया कि उनकी पत्नी प्रभा देवी को पिछले तीन साल से कूल्हे में दर्द की शिकायत थी। इलाज के लिए पास के अपेक्स अस्पताल ले गए, जहां हड्डी के डॉक्टर संजीव त्रिपाठी ने इलाज के लिए प्रक्रिया शुरू करते हुए क हा कि कूल्हे की हड्डी टूट गई है। साथ ही कूल्हा बदलवाने का सुझाव दिया। दो लाख रुपए तक सर्जरी का खर्च बताया व फरवरी 2014 में आॅपरेशन कर कूल्हा लगा दिया। वर्मा ने कहा कि डाक्टर पर भरोसा करने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था। लिहाजा वे तैयार हो गए। डॉक्टर त्रिपाठी व डॉक्टर एनके सक्सेना की राय व निगरानी में उनका विमलादेवी अस्पताल में आॅपरेशन किया गया।
उन्होंने आगे बताया कि आॅपरेशन के दो महीने के बाद ही नए लगे कृत्रिम कूल्हे में भी फ्रैक्चर हो गया। वर्मा ने आरोप लगाया कि तब डॉक्टर संजीव ने कहा कि वह वास्तविक हड्डी का था इसलिए फिर से आॅपरेशन करना पड़ेगा और मरीज को कुछ दिन तक आराम करने की जररूत होगी। इसे ठीक होने में वक्त लगेगा। जब मरीज-चलने फिरने में पूरी तरह असमर्थ हो गई तो वे फि रउन्हें लेकर नौ मार्च 2017 को डॉक्टर त्रिपाठी को फि र दिखाया। इसके बाद उन्होंने एपेक्स अस्पताल में उन्हें 10 अप्रैल क ो फि र से भर्ती कर लिया। जांच में पता लगा कि इंप्लांट लगाना (कृत्रिम कूल्हा लागाना) नाकाम हो गया है। इसलिए फि र सर्जरी होगी। सूजन व दर्द के बावजूद उसका पहले इलाज नहीं किया गया बल्कि उनका आॅपरेशन कर बड़ा कूल्हा लगाने का फैसला कर लिया और 11 अप्रैल क ो दोनों डॉक्टरों ने आॅपरेशन कर डाला। उनका आरोप है कि इस बार फि र लापरवाही की गई। बड़ा व मोटा इप्लांट लगाया गया जिसके कारण हड्डी भी टूट गई। डॉक्टर यहीं नहीं रुके। उन्होंने टूटी हड्डी में तीन तार लगा कर हड्डी को मोड़ दिया। लापरवाही का आलम यह भी रहा कि लोहे का एक तार अंदर ही छोड़ कर टांका लगा दिया गया। जो बाद में किए गए एक्सरे में साफ दिखाई दे रहा है। वर्मा ने आरोप लगाया कि इन सबके कारण उनकी पत्नी क ी हालत फिर गंभीर हो गई। लेकिन बिना उनकी स्थिति में सुधार के ही उन्हें 16 अप्रैल क ो अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इस दौरान उन्हें संक्रमण (सेप्टीसीमिया) हो गया। दोपहर तक स्थिति यह हो गई कि फिर से उसी दिन भर्ती करना पड़ा।
डीएमसी को दी गई शिकायत में कहा गया है कि गंभीर हालत के बावजूद उचित ध्यान नहीं दिया गया। इस दौरान खर्च पर खर्च बताया जाता रहा। मरीज के परिजन भुगतान करते रहे। वह 27 अप्रैल तक अस्पताल में भर्ती रही और आराम नहीं होने पर भी जबरन 27 को छुट्टी दे गई। पैरों में सूजन व दर्द बना रहा। हालत इतनी खराब हो गई कि 28 को फिर से भर्ती करना पड़ा। तब तक मरीज की दर्द व परेशानी से लड़ने की ताकत खतम होने लगी थी। उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी। पैरों में भयंकर दर्द था। परिजनों का आरोप है कि तब भी मरीज की बिगड़ती हालत के बारे में डॉक्टर कुछ भी बता नहीं रहे थे। डॉक्टर केवल यही कह रहे थे कि कुछ मरीजों में दिक्कत आती है। सेप्टीसीमिया का इलाज हो जाएगा। चिंता न करें। पैरों में सड़न शुरू हो गई। इसके बाद मरीज को मैक्स भेज दिया गया। बेहतर इलाज के नाम पर चार लाख रुपए की मोटी रकम फिर वसूली गई।
मैक्स में पांच मई से नौ मई तक भर्ती रखा। वेंटीलेटर व दवा के नाम पर दो लाख रुपए तक का बिल बना। किसी भी कीमत पर पत्नी को बचाने की जद्दोजहद में लगे वर्मा ने बताया कि बेहतर इलाज का बिल चुकाने के बाद भी सुधार न हुआ। बाद में जबरन उनको यहां से किसी भी अस्पताल जाने के लिए कह कर छुट्टी दे दी गई। तब वे पत्नी को लेकर जीवन अस्पताल महारानी बाग भागे। नौ मई को वहां भी वेंटीलेटर का बिल बना पर सुधार नहीं हो रहा था तो उन्होंने सरकारी अस्पताल ले जाने को कह कर छुट्टी दे दी। इस तरह से दस मई को एक और अस्पताल जाने के रास्ते में मरीज ने दम तोड़ दिया।
वर्मा ने बताया कि मरीज को कौन सा इंप्लांट कहां से, किस कंपनी का लगा इसका कोई भी ब्योरा नहीं दिया गया। न ही उसका क्रमांक और रसीद गई गई। वर्मा ने अपनी शिकायत में कहा है कि उनकी पत्नी की दुखद मौत डॉक्टरों की लापरवाही से हुई है। इसकी जांच कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि किसी दूसरे मरीज के साथ ऐसी घोर लापरवाही न हो।

