दिल्ली सरकार ने हाल ही में भिखारियों के खिलाफ अभियान चलाने का एलान किया था हालांकि सीएम अरविंद केजरीवाल के दखल के बाद इसे रद्द कर दिया गया। केजरीवाल ने इस अभियान को अमानवीय बताया था। इस अभियान को सामाजिक कल्याण मंत्री संदीप कुमार ने तैयार किया था। कनॉट पैलेस पर प्राचीन हनुमान मंदिर के पास भीख मांगने वाली सावित्री सिंह कहती हैं, ”सरकार चाहती है कि हम मंदिरों के पास ना रहें, सड़कों पे ना रहें तो हम जाएं कहां? हम भी नागरिक हैं।” 60 साल की सावित्री के पास वोटर आईडी कार्ड भी है। वह एक साल पहले से ही यहां पर बैठने लगी है। मंदिर के दांयी तरफ वह अपने बेटे कृष्णा के साथ बैठी रहती है, फिर चाहे सर्दी हो, गर्मी हो या बारिश। सावित्री बताती है वह हिलडुल नहीं सकती। वह कहती है, ”मैं सुबह पांच बजे उठती हूं। कृष्णा मुझे नल के पास ले जाता है और नहाने में मदद करता है। वहां से आने के बाद वह चावल और सब्जी बनाता है। इसके बाद वह काम पर चला जाता है।”
कृष्णा रिक्शा खींचने जैसे काम करता है। काम पर जाने से पहले वह मंदिर में आने वाले लोगों की ओर दान मिली सावित्री की व्हीलचेयर और थ्रीव्हीलर को केनोपी की तरह लगाकर जाता है ताकि उसकी छाया में उसकी मां बैठ सके। सावित्री ने बताया, ”कृष्णा जब शाम को आता है तब ही मैं उठती हूं।” आज कृष्णा बाहर नहीं गया इसलिए मां के साथ ही रहा। मंदिर के पास बैठने वाले अन्य भिखारी एक दिन में 200 रुपये के करीब कमा लेते हैं लेकिन सावित्री 20 रुपये ही जुटा पाती है। मंगलवार को यह राशि 500 रुपये तक हो जाती है। वह बताती है, ”मैं चल नहीं सकती। इसलिए लोगों के पीछे भाग नहीं सकती। लेकिन कुछ रोज आने वाले लोग मेरे पास आते हैं।”
सावित्री अपने अच्छे दिनों के बारे में बताती है, ”15 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई थी। मैं इलाहाबाद से हूं और मेरे पति अयोध्या से थे। वे दिल्ली में फिलिप्स की कंपनी में काम करते थे। हम लोग पहाड़गंज में किराए के मकान में रहते थे।” उसके पति राम सिंह ने बाद में टीवी ठीक करने की दुकान खोल ली। उनके दो बेटे और एक बेटी थी। 13 साल पहले राम सिंह की गले के कैंसर से मौत हो गई। सावित्री ने बताया, ”उनके इलाज के लिए दुकान को बेचना पड़ा।” बेटी की शादी हो चुकी है और वह सोनिया विहार में रहती है। कुछ सालों पहले उसका छोटा बेटा गुम हो गया। डेढ़ साल पहले सावित्री को गर्दन में दर्द रहने लगा। इसके बाद से वह चल नहीं सकती। इसके बाद वे इस मंदिर के पास रहने लगे।
बाकी के भिखारी सावित्री को ‘पहाड़गंज वाली अम्मा” कहकर पुकारते हैं। शाम के पांच बजे कृष्णा उठता है और मां से चाय के बारे में पूछता है। इसी दौरान चाय की थड़ी के पास खड़ी एक महिला उनसे चाय या कचौरी के लिए पूछती है। सावित्री कहती है, ”चाय, लेकिन पेड़ के नीचे वाली दुकान से।” कृष्णा बताता है, ”मंदिर वाली दुकान पर पानी सी चाय मिलती है।” इसी दौरान बंदर व्हीलचेयर पर रखे आटे को बिखेर देते हैं। कृष्णा उन्हें भगाता है। सावित्री बताती है, ”पहले मैं उठ भी नहीं पाती थी। लेकिन कल पोल के सहारे से चार बार खड़ी हुई और बैठी। यह सब भगवान की कृपा है।” इसी दौरान चार लोग सावित्री के पास आते हैं और उनसे मंदिर से सामान हटाने को कहते हैं। सावित्री वहीं जमी रहती है और कहती है, ”ये मंदिर है, मैं भी देखती हूं मुझे कौन हटाता है।” कृष्णा सामान हटाने का आश्वासन देकर उन लोगों को वहां से भेजता है। सावित्री गुस्से में कहती है, ”वे मंदिर में मौजूद चाय की दुकान के लोग थे। मैंने उस महिला को इनकी चाय लेने से मना कर दिया था इसलिए वे मुझे डराने आए थे। लेकिन मैं डरती नहीं।”
शाम हो चुकी है। सावित्री एक महीने पहले इलाहाबाद यात्रा के बारे में बताती है, ”मेरे रिश्तेदारों को नहीं पता कि मैं यहां दिल्ली में भीख मांगती हूं। वहां मैं आजाद घूमी।” जब उससे पूछा कि वह अपने रिश्तेदारों के पास मदद के लिए क्यों नहीं जाती तो सावित्री ने बताया, ”मैं राजपूत हूं, हर किसी से भीख नहीं मांगती।” उसने बताया कि उसकी बेटी को इस बारे में नहीं पता।
