दिल्ली के आप विधायक और पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की कथित एलएलबी की डिग्री मामले में दोबारा उनसे कैफियत पूछी जाएगी और जबाव के लिए एक हफ्ते का समय दिया जाएगा। मंगलवार देर रात चली परीक्षा बोर्ड की बैठक का यही निचोड़ सामने आया। बैठक की अध्यक्षता तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रमाशंकर दुबे ने की। विश्वविद्यालय तोमर मामले को लेकर वैसी कोई जल्दबाजी में नहीं है। तोमर की कानून की डिग्री रद्द करने क लेकर विश्वविद्यालय के पास तमाम सबूत मौजूद है। यह बात कुलपति भी मानते है। बैठक के बाद कुलपति प्रो. रमाशंकर दुबे ने कहा कि 21 सितंबर को हुई परीक्षा बोर्ड की बैठक में तोमर से उनकी कानून की डिग्री रद्द करने के बाबत जवाब तलब करने का फैसला लिया था। उनका लंबा चौड़ा जवाब तो आया, पर मुख्य बिंदू ही उसमें गौण है।

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कुलपति बताया कि चूंकि मामला हाईप्रोफाइल है और अदालत में है। इसलिए तोमर को अपनी सफाई का एक मौका और देने का परीक्षा बोर्ड ने निर्णय किया है। साथ ही कुछ कानूनी पहलू भी है। अबकी कैफियत में तीन-चार बिंदुओं पर ही जवाब मांगते हुए उनकी एलएलबी की डिग्री क्यों न रद्द करने जैसी दो टूक बात लिखी जा रही है। साथ में सबूतों का जिक्र भी होगा। अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद के रजिस्ट्रार एएम अंसारी की ओर से मिले फैक्स ने तो उनकी स्नातक विज्ञान की डिग्री को ही जाली करार दे दिया है। तोमर की स्नातक डिग्री की असलियत के बारे में भागलपुर विश्वविद्यालय ने अवध विश्वविद्यालय को पत्र भेज कर पूछा था। उनका बुंदेलखंड झांसी का 2001 में यहां जमा किया माइग्रेशन प्रमाणपत्र भी फर्जी निकला। इसी आधार पर तोमर ने मुंगेर के विश्वनाथ सिंह इंस्टीट्यूट आफ लीगल स्टडीज में 1994-1998 सत्र में दाखिला लिया था।

प्रति कुलपति डा. अवधेश किशोर की अध्यक्षता में बनी आंतरिक जांच समिति ने भी तोमर की कानून की डिग्री को फर्जी तरीके से हासिल करने की बात लिखी है। जिसमें उस वक्त के परीक्षा नियंत्रक सहित 13 जनों को कसूरवार ठहराया। फिर भी डिग्री रद्द करने में विश्वविद्यालय प्रशासन क्यों हिचक रहा है। इस सवाल का कोई जवाब नहीं है। जानकार इसके पीछे की वजह बताते है। जो एक हद तक सटीक भी लगती है। असल में मौजूदा कुलपति प्रो. रमाशंकर दुबे का कार्यकाल फरवरी 2017 में पूरा हो रहा है। कुलाधिपति सह राज्यपाल ने इनके समेत बिहार के 11 विश्वविद्यालयों, कुलपतियों के वित्तीय और दूसरे अधिकार पर रोक लगा दी है। इसको ध्यान में रख और कानूनी झंझट से ये बचना चाहते हैं। मामला टालने और फूंक-फूंक कर कदम रखने की मंशा इस बात को पुख्ता करती है।