बकाया वसूली को लेकर हालिया दिनों में बैंकों की सख्ती का खामियाजा आखिरकार बिल्डर कंपनियों को नहीं, बल्कि निवेशकों को भुगतना पड़ेगा। बुकिंग कराई गई परियोजना का निर्माण कार्य पूरा नहीं होने से वैधानिक रूप से खरीदारों का पक्ष दस्तावेजी रूप में ज्यादा मजबूत नहीं है। हालांकि रेरा में पंजीकरण के बाद खरीदारों और निवेशकों की स्थिति मजबूत जरूर हुई है। अलबत्ता फ्लैट या रकम दोनों में से क्या मिलेगा, इसको लेकर उनमें असमंजस का माहौल बना हुआ है। आलम यह है कि जेपी और आम्रपाली के अलावा दर्जनों अन्य बिल्डरों की परियोजनाओं में बड़ी रकम फंसा चुके खरीदार अब रोजाना निर्माण स्थल पर जाकर निर्माण की प्रगति का जायजा ले रहे हैं। जानकारों का मानना है कि बकाया वसूली को लेकर बिल्डर कंपनियों के खिलाफ बैंकों का सख्त रवैया जारी रहेगा। नोएडा-ग्रेटर नोएडा की बिल्डर परियोजनाओं में निवेशकों की संख्या लाखों में है। रियल एस्टेट परियोजनाओं में निवेशकों के हजारों करोड़ रुपए लगे हैं। इतनी बड़ी रकम दांव पर लगे होने की वजह से निवेशक अब अपने स्तर पर भी बचाव संबंधी कानून राय ले रहे हैं, ताकि मकान या रकम, दोनों में से कुछ हासिल हो सके। कानूनी जानकारों के मुताबिक, किसी उत्पाद बनाने वाली कंपनी के दिवालिया होने पर लोगों पर ज्यादा असर नहीं पड़ता है।
वहीं रियल एस्टेट कंपनी, जो बहुमंजिला इमारतों में बड़ी संख्या में फ्लैट बनाने का काम कर रही है, उसके दिवालिया होने पर स्थिति चुनौतीपूर्ण बन जाती है, खासतौर पर निवेशकों के लिहाज से। इस वजह से जेपी इंफ्राटेक का मामला हजारों निवेशकों के लिए बेहद जटिल है। क्योंकि इस मामले में अलग-अलग कानूनों और कुछ तो एक-दूसरे के विरोधाभासी कानूनों की व्याख्या होगी। जो भविष्य में ऐसे मामलों के लिए नजीर बनेगी। जानकारों का मानना है कि अभी भी निवेशकों के पास कई विकल्प मौजूद हैं, जिनसे रकम या मकान, किसी एक को हासिल कर सकते हैं। निवेशक कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में अपना दावा भी कर सकते हैं। जेपी के निवेशक 24 अगस्त तक अपना निवेश संबंधी ब्योरा निर्धारित फार्म भरकर जमा कराएं। खासतौर पर बैंक से लोन लेने वाले निवेशक मौजूदा स्थिति को देखते हुए ईएमआई चुकाना बंद न करें। विशेषज्ञों का कहना है कि इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल कंपनी को पुनर्जीवित करने की कोशिश करेगा इसलिए निवेशक के लिए कुछ हद तक उम्मीद की किरण बाकी रहेगी। ईएमआइ चुकाना बंद करने से न केवल निवेशकों की क्रेडिट रेटिंग के खराब होने का खतरा बढ़ेगा, बल्कि दिवालियापन की प्रक्रिया के दौरान उन्हें मुश्किलों का भी सामना करना पड़ेगा।
इन्सॉल्वेंसी प्रफेशनल को 270 दिनों के भीतर बिल्डर कंपनी के लिए एक विश्वसनीय रिवाइवल (पुनर्जीवित) योजना बनानी होगी। इसके लिए 90 दिनों का अतिरिक्त समय भी मिल सकता है। माना जा रहा है कि अन्य कंपनियों के मुकाबले जेपी कंपनी की रिवाइवल योजना सहज नहीं होगी। इसकी वजह यह है कि इस कंपनी में हजारों की संख्या में खरीदारों ने निवेश किया है। जिसके चलते रिवाइवल (पुनर्जीवित) काफी अहम है। अगर कंपनी की स्थिति नहीं सुधरती तो उसका कर्ज चुकाने के लिए संपत्तियां बेची जाएंगी। इसके अतिरिक्त विकल्प के रूप में कंपनी के दोबारा चलने योग्य न हो पाने पर बैंक के पास अधिकार होगा कि वह इक्विटी (बुकिंग न होने वाली संपत्ति) खरीद ले।
चूंकि दिवालिया हुई कंपनी की संपत्तियां बेचकर अच्छी रकम नहीं जुटाई जा सकती है क्योंकि संकट ग्रस्त कंपनी की संपत्तियों को खरीदार बहुत कम कीमत पर खरीदना चाहेंगे। हालांकि बाद में इन संपत्तियों की अच्छी कीमत मिल सकती हैं। ऐसे में बैंक कंपनी की संपत्तियों को बेचकर तत्काल अपनी रकम निकालने के बजाए कंपनी की हिस्सेदारी खरीद सकता है।