वैशाली कला केंद्र ने गुरु श्रीनाथ राउत की याद में प्रणति स्वरुप अपने वार्षिक आयोजन गुरु प्रणाम उत्सव में इस बार पहली शाम नृत्य पर केंद्रित रखी तो दूसरी शाम संगीत पर। इसकी दो वजहें थीं। पहली तो यह कि ओडिशी संगीत-नृत्य का यह केंद्र नृत्य में संगीत की अहम भूमिका को भलीभांति समझता है लेकिन दूसरा महत्वपूर्ण कारण यह था कि इस बार का श्रीनाथ राउत सम्मान गायनाचार्य पं. बंकिम सेठी को संगीत के क्षेत्र में उनके आजीवन योगदान के लिए प्रदान किया गया था। ओड़िशी संगीत के दिग्गज गायक और गुरु पं बंकिम सेठी ने ओडिशी नृत्य के लिए अनेकानेक रचनाओं का संगीत संयोजन भी किया है।
उन्हें सम्मानित तो समारोह की उदघाटन संध्या हेबिटाट सेंटर के स्टेन सभागार में किया गया था लेकिन उनका गायन अगली शाम मेघदूत सभागार में आयोजित संगीत संध्या में सुनने को मिला। पं. बंकिम सेठी ने ओडिशी संगीत के तीन महत्वपूर्ण अवयव रागांग, भाषांग और भावांग शैली में पहले राग प्रधान संगीत प्रस्तुत किया फिर भाषा पर यानी साहित्य पर केंद्रित संगीत रचनाएं पेश कीं।
फिर भावों को उद्वेलित करने वाली संगीत रचनाओं के माध्यम से एक ओर ओडिशी संगीत की समृद्धि का परिचय दिया तो दूसरी ओर अपनी सृजनशीलता का। इस शाम राजधानी के संगीत रसिकों को उनसे ओडिशा की विशेषकर भगवान जगन्नाथ से जुड़ी अनेक पारम्परिक संगीत रचनाएं सुनने का भी मौका मिला। उदाहरण के लिए ‘देखो गो सखी राधामाधव चाली…’ उस अवसर का गीत था जब भगवान जगन्नाथ झूले पर निकलते हैं। बंकिम जी ने अंतिम चरण में वह छंद भी सुनाया जिसे इस शोभायात्रा के आगे आगे पखावज वादकों के साथ गाया जाता है।
छांद एक अलग शैली भी होती है जिसमें उन्होंने उस प्रसंग का ओडिशी गीत सुनाया जब कृष्ण को लेकर अक्रूर मथुरा जा रहे हैं और गोपियां उनके विरह की कल्पना से कातर और व्यथित हैं। गोपियां उन्हें उपालंभ देती हैं तो कृष्ण कहते हैं मैं तुम्हें छोड़ कर नहीं जा रहा हूँ। मैं जहां भी जाऊं हमेशा तुम सबके दिल में रहूंगा। सुरों के माध्यम से भावों को संप्रेषित करने में बंकिम जी का जवाब नहीं। ओडिशी संगीत की एक अन्य विधा चम्पू भी उन्होंने इस शाम पेश की।
धनेश्वर स्वेन ने मर्दल पर उनकी ज़ोरदार संगति की। बांसुरी पर सौम्य रंजन यथा नाम तथा गुण थे।
इसके बाद पंं. बनमाली महाराणा के सुयोग्य शिष्य प्रफुठ मंगराज ने मर्दल पर त्रिपुट ताल की एकल प्रस्तुति दी। उनके साथ उनके शिष्य और सुपुत्र विश्वनाथ मंगराज ने अपने मर्दल वादन से भी प्रभावित किया जो एक अच्छे ओडिशी नर्तक हैं। लहरे के लिए वायलिन पर संजीव कुमार और बांसुरी पर सौम्य रंजन थे। संगीत संध्या का शुभारंभ सिद्धार्थ किशोर के हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन से हुआ था। बनारस घराने के युवा गायक रितेश मिश्र के शिष्य सिद्धार्थ ने राग पूरिया धनाश्री में ख़याल गाया। उनके साथ हारमोनियम पर दामोदर लाल घोष और तबले पर सुस्मय मिश्र थे।

