नोटबंदी के कारण मरीजों का अस्पताल पहुंचना तक दूभर हो रहा है। हालांकि सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज मुफ्त होता है फिर भी तमाम तरह की जांच व इलाज में कुछ न कुछ पैसा लग ही रहा है क्योंकि जांच के लिए मरीजों की निजी प्रयोगशालाओं पर निर्भरता खत्म नहीं हुई है। इसी के कारण इन दिनों विभिन्न अस्पतालों में करीब 40 फीसद कम मरीज आ रहे हैं। मरीज ही नहीं, बल्कि अस्पतालों में कर्मचारियों की उपस्थिति में भी 40 फीसद की गिरावट आई है। तमाम अस्पतालों के कर्मचारियों को केंद्र व दिल्ली सरकार की ओर से दस हजार रुपए नकद देने के दावे भी खोखले साबित हुए। दिल्ली के तमाम अस्पतालों के मरीजों के पंजीकरण पर नोटबंदी का असर दिखने लगा है। हालांकि सरकारी अस्पतालों में कुछ दिन बाद तक पुराने नोट लेने की छूट दी गई थी जो अब धीरे-धीरे कैशलेस व्यवस्था के रूप में नया आकार ले रही है, लेकिन इन सब के बावजूद मरीजों की संख्या में इन दिनों उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है।
महर्षि वाल्मीकि अस्पताल, गुरु तेगबहादुर अस्पताल (जीटीबी),लोकनायक जयप्रकाश नारायण (एलएनजेपी), जीबी पंत, गुरुनानक नेत्र चिकित्सालय, संजय गांधी अस्पताल व राममनोहर लोहिया अस्पताल सहित तमाम दूसरे अस्पतालों में इन दिनों में मरीजों की भीड़ में गिरावट देखी गई है। महर्षि वाल्मीकि अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ विजन डे के मुताबिक, इन दिनों अस्पताल में मरीजों के पंजीकरण में करीब 40 फीसद की गिरावट देखी गई है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अस्पताल में मरीजों को सारी सहूलियतें मुफ्त में दी जाती हैैं और जो जांच यहां संभव है वह जांच भी मुफ्त या किफायती दर पर की जाती है, लेकिन कई बार आने-जाने का किराया व खाने-पीने के खर्च के कारण एक बार अस्पताल के चक्कर लगाने पर मरीजों के दो से पांच सौ रुपए तक खर्च हो जाते हैं। ऐसे मरीज जिनकी बीमारी बहुत गंभीर नहीं है वे अभी अस्पताल आना टाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले एक-दो बार डॉक्टर को दिखा चुके मरीजों का आना तो फिरभी जारी है, लेकिन नए मरीजों का पंजीकरण कम हुआ है। अस्पतालों में जहां मरीजों का पंजीकरण कम हो रहा है वहीं डॉक्टर व कर्मचारियों की संख्या भी इन दिनों कम है। अस्पतालों के करीब 40 फीसद कर्मचारी इस वक्त छुट्टी पर हैं। कई कर्मचारी पैसे निकालने के लिए लाइन में लगने के मकसद से छुट्टी ले रहे हैं। चिकित्सा अधीक्षक ने बताया कि दिसंबर महीने में ज्यादातर कर्मचारी अपनी छुट्टियां खत्म करने के लिहाज से भी छुट्टी लेते हैं। इन दिनों ज्यादातर ओटी स्टाफ या दूसरे कर्मचारी छुट्टी पर होते हंै क्योंकि वह साल में दो ही बार छुट्टी ले पाते हैं।
रावतुलाराम अस्पताल कर्मचारी यूनियन के पूर्व पदाधिकारी गजराज तोमर ने कहा कि एक कर्मचारी को पैसे एक बार में नहीं मिल रहे हैं। दस हजार कैश देने को कहा था वह भी नहीं मिला। रोजमर्रा के काम के लिए लोगों को कुछ कैश तो चाहिए। यह वजह भी है कि कर्मचारी छुट्टियां लेकर पैसे निकालने जा रहे हैं क्यंोंकि एक बार में उनको जरूरत भर का पैसा नहीं मिल पा रहा है। फर्क यह है कि पहले वे छुट्टी लेकर बाहर जाते थे, लेकिन अब वे यह समय पैसे निकालने में बिता रहे हैं। पैसों की किल्लत के कारण उनका बाहर जाना नहीं हो पा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि दिसंबर में मरीजों की संख्या कुछ कम ही रही है क्योंकि डॉक्टर व कर्मचारी पैसों के इंतजाम के लिए छुट्टी पर हैं। एलएनजेपी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक ने कहा कि इन दिनों मरीजों की संख्या में कुछ कमी जरूर हुई है। आमतौर से इस अस्पताल के ओपीडी में में 900 से लेकर 1000 मरीज रोजाना आते हैं, लेकिन पैसों के इंतजाम में लगे होने या कैश की समस्या के कारण ओपीडी में इन दिनों औसत पंजीकरण चाढ़े चार सौ से पांच सौ के बीच हो रहा है। एक मरीज रहमान ने बताया कि एक बार आने पर करीब 200 से 500 रुपए किराए व खाने-पीने से खर्च हो जाता है क्योंंकि अस्पताल में दिखाने के लिए पंजीकरण से लेकर दवाई पाने तक में पूरा दिन लग जाता है। उन्होंने बताया कि कई बार कुछ जांचें बाहर से करानी पड़ती हैं, उसमें भी पैसे लगते हैं।
सूत्रों के मुताबिक, लालबहादुर शास्त्री अस्पताल में रोजाना करीब साढ़े छह सौ मरीज आते हैं जबकि सोमवार को इसके ओपीडी में कुल 355 मरीजों का पंजीकरण हुआ। यहां भी कर्मचारी कम हैं। जीटीबी अस्पताल में भी इन दिनों कर्मचारी या तो शनिवार को या फिर छुट्टी लेकर नकद के लिए बैंक में जा रहे हैं। रावतुलाराम अस्पताल में इसके लिए अलग से कोई इंतजाम नहीं है कि कर्मचारी सहूलियत से पैसे निकाल सकें। सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक के मुताबिक अस्पताल में पैसों का ज्यादा काम नहीं है इसलिए यहां ज्यादा फर्क नहीं है। कर्मचारी जरूर कम हैं क्योंकि दिसंबर होने के कारण लोग अपनी छुट्टियां ले रहे हैं।
