दिल्ली में वायु प्रदूषण के साथ ही जल प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या है। नालों में बहता गंदा जल जहां बदबू फैलाता है, वहीं भू-जल को भी प्रदूषित कर रहा है। इस समस्या के निदान के लिए दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (डीटीयू) ने एक कोशिश शुरू की है। विवि आधुनिक और परंपरागत तकनीकों से मल-जल का शुद्धिकरण करके उसका उपयोग पौधों में करने के साथ ही पानी से बचे अपशिष्ट से केंचुए की जैविक खाद भी तैयार कर रहा है।
डीटीयू के कुलपति प्रो योगेश सिंह ने बताया कि हमारी सोच है कि प्रदूषण को कम करने के अधिक से अधिक उपाय किए जाएं और यह प्लांट इसी सोच पर आधारित है। विवि के मुख्य द्वार के साथ बने मल-जल शोधन सयंत्र (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) में विवि परिसर से जमा हुए गंदे पानी व सीवरेज के पानी को शुद्ध करके पौधों में देने के काबिल बनाया जाता है। तकरीबन 1.90 करोड़ रुपए की लागत से बने एक एमएलडी प्रतिदिन की क्षमता वाले इस संयंत्र में जल शोधन की वैज्ञानिक विधियों के साथ ही परंपरागत विधियों का भी उपयोग किया गया है।
ओजोन गैस से होता है जिवाणुओं का खात्मा
जल के शुद्धिकरण के बावजूद भी उसमें 10 फीसद तक जिवाणु और बदबू जैसी अशुद्धियां रह जाती हैं। इनको हटाने के लिए इस पानी को ओजोन टैंक में लाया जाता है। यहां लैब में आॅक्सीजन के अणुओं को तोड़ कर तैयार की जा रही ओजोन को 300 मिलीलीटर प्रति घंटा की दर से इस पानी में मिलाया जाता है। इसके बाद यह पानी पूरी तरह से साफ हो जाता है। फिलहाल इस साफ पानी को संयंत्र के आस-पास के पौधों व पार्को में उपयोग किया जा रहा है।
केंचुए की खाद भी बनाई जाती है
पापुलर की लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों में आस्ट्रेलियन केंचुए भी छोड़े गए हैं। ये केंचुए पानी में मौजूद जिवाणुओं को खत्म करते हैं। आस्ट्रेलियन केंचुओं का इस्तेमाल इस लिए किया जाता है क्योंकि यह बहुत जल्दी प्रजनन करते हैं और लकड़ी के टुकड़ों के गलने के बाद उन्हें जैविक खाद में परिवर्तित कर देते हैं। खाद बनने की इस प्रक्रिया में 6 से 8 महीने का समय लगता है। उसके बाद इस खाद को पौधों में डालने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
ऐसे होता है पानी का शुद्धीकरण
संयंत्र में गंदे जल को फिल्टर कर प्लास्टिक को अलग किया जाता है। उसके बाद गंदे जल को फव्वारों से 6 ट्रे-स्टैग में डाला जाता है। उनमें पापुलर की लकड़ी की कतरनें होती हैं। उनके नीचे बारीक और मध्यम आकार की बजरी और मोटे पत्थर की तह बनाई गई है। इन सब के बाद पानी साफ होकर एक बायो फिल्टर पिट में एकत्रित हो जाता है।

