जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रशासन ने दिल्ली हाई कोर्ट से अपील की है कि वह उसके छात्रों को प्रशासनिक ब्लॉक के 100 मीटर के भीतर कोई भी विरोध प्रदर्शन करने से रोकने के लिए निर्देश जारी करे। जेएनयू प्रशासन ने यह याचिका जस्टिस संजीव सचदेवा के समक्ष दायर की। उन्होंने हाल ही में छात्रों से कहा था कि वे विरोध प्रदर्शन के दौरान अपनी आवाजों का स्तर नीचे रखें ताकि विश्वविद्यालय के कामकाज में बाधा न आए। अदालत ने 17 मार्च को छात्रों को ब्लॉक के 100 मीटर के भीतर विरोध प्रदर्शन से रोकने वाले अपने आदेश में बदलाव किया था और निर्देश दिया था कि यदि कोई विरोध प्रदर्शन किया जाता है तो वह शांतिपूर्ण होना चाहिए और इसके कारण प्रशासनिक ब्लॉक तक जाने वाली कोई लेन या सड़क अवरूद्ध नहीं होनी चाहिए।
याचिका में यह आरोप लगाया गया कि जेएनयू के छात्रों ने आश्वासन के बावजूद अदालत के निर्देशों की अवज्ञा की है। याचिका में आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई। जेएनयू की वकील मोनिका अरोड़ा की ओर से दायर याचिका में ‘अदालत के तत्काल हस्तक्षेप’ की मांग की गई और कहा गया कि 23 मार्च को छात्रों ने प्रशासनिक ब्लॉक के ठीक बाहर धरना दिया, कुलपति का पुतला फूंका और विश्वविद्यालय के अधिकारियों का प्रवेश और निकास बाधित कर दिया।
याचिका में मांग की गई कि अदालत पुलिस को यह निर्देश दे कि जब भी अनुरोध किया जाए, तब पुलिस पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध करवाए। इसके अलावा याचिका में यह निर्देश देने की भी मांग की गई कि जेएनयू के प्रशासनिक ब्लॉक के 100 मीटर के भीतर ‘‘शोर मचाने वाले उपकरणों के साथ या उनके बिना भी धरना, विरोध प्रदर्शन या नुक्कड़ नाटक आदि करने की अनुमति नहीं होगी।’’
अदालत ने याचिका की अगली सुनवाई 12 अप्रैल के लिए निर्धारित की है। अदालत ने पूर्व में आंदोलनरत छात्रों द्वारा जेएनयू के प्रशासनिक विभाग को अवरूद्ध करने के खिलाफ विश्वविद्यालय की याचिका पर निर्देश जारी किया था। पूर्व में याचिका की सुनवाई पर अदालत ने सुझाव दिया था कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष और प्रशासन आपस में सार्थक वार्ता करें। इससे कई समस्याओं का समाधान हो सकता है।