केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने मंगलवार को दसवीं कक्षा की परीक्षा के परिणामों की घोषणा की और 86.70 फीसद विद्यार्थियों को उत्तीर्ण घोषित किया। साल 2010 में निरंतर व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) प्रणाली को लागू किया गया था जिसके आधार पर 2011 में परिणाम जारी किया गया था। उससे पहले साल 2010 और 2009 के मुकाबले इस साल का परिणाम 2.58 फीसद और 2.14 फीसद क्रमश: कम हुआ है। केंद्र सरकार ने साल 2010 में कक्षा दस के लिए सीसीई लागू किया जिसके आधार पर 2011 में पहला परिणाम आया। 2011 के परिणाम में 2010 के मुकाबले 7.62 फीसद की बढ़ोतरी हुई थी। साल 2010 में दसवीं में 89.28 फीसद विद्यार्थी पास हुए थे। यानी अब बिना सीसीई लागू किए सालों की तुलना में भी दसवीं का परिणाम गिरा है। सरकारी स्कूल की एक प्रधानाचार्य का कहना है कि सीसीई की मानसिकता से निकलने में शिक्षकों को अभी कुछ समय और लगेगा जिसके बाद नतीजों में सुधार देखा जाएगा। बिना सीसीई के यह पहला साल है। पुरानी स्थिति में आने में अभी समय लगेगा।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के पूर्व प्रमुख और शिक्षाविद जेएस राजपूत का कहना है कि सीसीई बहुत गलत निर्णय था। परीक्षा की इस प्रणाली से बच्चों को बहुत नुकसान हुआ है। इससे उनकी सोच और समझ को भी हानि पहुंची है। उन्होंने कहा कि सीसीई उन जगहों पर लागू होता है जहां एक शिक्षक के ऊपर अधिक से अधिक 15 से 20 बच्चों को पढ़ाने का ही भार हो ताकि शिक्षक के पास इतना समय हो कि वह हर बच्चे पर सही तरह की ध्यान दे सके। सीसीई न सिर्फ सरकारी विद्यालयों में बल्कि निजी विद्यालयों में भी विफल रहा। यह बहुत अच्छा रहा कि समय रहते ही उसे हटा लिया गया। राजपूत ने बताया कि सीसीई हटने के बाद न केवल बच्चों से बल्कि उनके अभिभावकों के ऊपर से भी दबाव कम हुआ है।
पहले विद्यार्थियों हर सोमवार को टेस्ट होता था जिसके लिए उनको अपना रविवार खत्म करना पड़ता था। इस वजह से वे न खेल पाते थे और न ही कुछ मनोरंजन कर पाते थे। जेएस राजपूत ने कहा कि मुझे से अगर कोई पूछे कि 500 में से 499 अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को आप क्या राय देंगे तो मैं कहूंगा कि उन्हें पढ़ाई पर कम खेल पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। अपने पसंदीदा काम करो, संगीत सुनो। नंबर की दौड़ बंद होनी चाहिए क्योंकि इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है। उन्होंने अभिभावकों को भी सलाह दी कि उन्हें अपने बच्चों से अच्छे अंक लाने के लिए कहना चाहिए न किसी अन्य से उसकी तुलना करनी चाहिए।
सीसीई गलत निर्णय था : राजपूत
शिक्षाविद जेएस राजपूत का कहना है कि सीसीई बहुत गलत निर्णय था। परीक्षा की इस प्रणाली से बच्चों को बहुत नुकसान हुआ है। इससे उनकी सोच और समझ को भी हानि पहुंची है। सीसीई उन जगहों पर लागू होता है जहां एक शिक्षक के ऊपर 15 से 20 बच्चों को पढ़ाने का भार हो ताकि शिक्षक के पास इतना समय हो कि वह हर बच्चे पर सही ध्यान दे सके। सीसीई न सिर्फ सरकारी विद्यालयों में बल्कि निजी विद्यालयों में भी विफल रहा।

