उच्चतम न्यायालय ने 2002 के अक्षरधाम आतंकी हमले के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा बरी किए जा चुके छह लोगों की उस याचिका पर विचार करने से मंगलवार (5 जुलाई) को इनकार कर दिया जिसमें मांग की गई है कि उनकी ‘गलत तरह से’ गिरफ्तारी के लिए मुआवजा दिया जाए। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ ने कहा कि अगर बरी किए गए लोगों को ‘गलत तरह से’ गिरफ्तारी के लिए मुआवजे की मांग को स्वीकार किया जाता है तो खतरनाक मिसाल बन जाएगी।
बरी किए गए लोगों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने पीठ के मिजाज को भांपने के बाद याचिका वापस ले ली और कहा कि वे दुर्भावनापूर्ण अभियोजन के लिए गुजरात पुलिस के खिलाफ मामला शुरू कर सकते हैं। इससे पहले गुजरात सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि इसका जांच एजेंसियों पर गंभीर हतोत्साहित करने वाला असर पड़ेगा।
गुजरात सरकार ने कहा था कि निचली अदालत ने और गुजरात उच्च न्यायालय ने उन्हें आतंकी हमले में उनकी कथित भूमिका के लिए दोषी ठहराया था जिसमें 32 लोग मारे गए थे, इसलिए उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कम करने के मुद्दे को स्वीकार नहीं किया जा सकता, जिसका वे दावा कर रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने 16 मई, 2014 को मामले में तीन कैदियों समेत छह लोगों को बरी कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘अभियोजन पक्ष की कहानी हर बिंदु पर कमजोर पड़ जाती है।’