आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक के खिलाफ आंदोलनकारी छात्रों के साथ एम्स के संकाय सदस्य भी खड़े हुए। एम्स के रेजीडेंट डॉक्टरों व छात्रों के साथ संकाय सदस्यों ने शनिवार को बैठक की। फेम्स इस मामले में सोमवार को जीबीएम करके अपनी रणनीति तय करेगी। उन्होंने शनिवार को बैठक में छात्रों व डॉक्टरों के साथ इस विधेयक की तमाम पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने इस विधेयक में आयोग को स्वायत्तता न दिए जाने को चिंताजनक बताया और आरोप लगाया कि इस विधेयक के जरिए सरकार चिकित्सा शिक्षा व सेवा को पूरी तरह से अपने कब्जे में लेना चाहती है। इसलिए आयोग को स्वायत्तता भी नहीं दी गई है।
एक संकाय सदस्य ने सरकार की मंशा पर ही सवाल उठाया और कहा कि जिस तरह इस विधेयक को पारित कराने की जल्दबाजी की जा रही है उससे भी यही जाहिर होता है। जबकि 2017 से तैयार इस विधेयक पर चर्चा कराने के लिए पर्याप्त समय था। लेकिन सरकार इससे जुड़ी दिक्कतों को दूर किए बिना व चिकित्सा क्षेत्र के लोगों को विश्वास में लिए बिना आनन फानन में यह विधेयक पास कराना चाहती है।
संकाय सदस्यों ने कहा कि निजी मेडिकल कालेजों क ी 85 फीसद सीटों पर शुल्क तय करने का अधिकार सरकार के पास होना चाहिए ताकि गरीब घरों के बच्चे भी मेडिकल की पढ़ाई कर सकें। वर्ना वे मेधावी होकर भी इस आदर्श पेशे में पढ़ाई व काम करने से महरूम रह जाएंगे क्योंकि इस विधेयक के मौजूदा स्वरूप में पारित होने से पहले से ही महंगी चिकित्सा शिक्षा का और तेजी से व्यवसायीकरण हो जाएगा।
इसी तरह सामुदायिक स्वास्थ्य के मसले पर भी उन्होंने चिंता जताई। उन्होंने कहा कि एक तरह से सरकार इस विधेयक के जरिए झोलाछाप डॉक्टरों को लाइसेंस देने की बात कह रही है। जबकि सरकार को विधेयक में यह साफ करना चाहिए था कि वह इस तरह की बेमानी शर्तों के जरिए क्यों व क्या फायदा लेना चाहती है। जबकि इससे लोगों क ी जान को जोखिम में डालना होगा।
संकाय सदस्यों ने यह भी कहा कि सरकार के पास पर्याप्त समय था कि वह लाइसेंस के लिए प्रस्तावित परीक्षा नेक्स्टा का पूरा खाका पेश करती। लेकिन यह करने की बजाय सरकार ने संसदीय स्थाई समिति की सिफारिशों को भी दरकिनार करके हड़बड़ी में विधेयक पास कराने की जो कोशिश की है वह समझ से परे है। एक संकाय सदस्य व विभागाध्यक्ष ने शिकायत निवारण प्रणाली पर विधेयक में कोई प्रावधान न होने पर भी चिंता जाहिर की। इस बीच एम्स आरडीए के डॉक्टर आदर्श ने देशवासियों के नाम खुला पत्र लिखा है।
उन्होंने पत्र में लिखा है कि सरकार एक विधेयक लाई है जिसमें कुछ लोगों को थोड़े समय का प्रशिक्षण देकर अंगे्रजी दवाएं मरीजों को देने का अधिकार दे रही है। जबकि उन लोगों को मानव शरीर के अंदर की क्रि या प्रतिक्रिया व अंगों की ज्यादा जानकारी नहीं होगी। एक तरह से यह झोलाछाप डॉक्टरों को अंग्रेजी दवाई देने का अधिकार दिया जा रहा है। यह भी साफ नहीं कि वे कितने पढ़े-लिखे होेंगे या किस तरह की बीमारियों का इलाज करेंगे या कौन-कौन सी दवाएं दे सकेंगे।
