दिल्ली मेट्रो रेल की जिस लाइन पर गुरुवार को रेलिंग गिरी, वह पहले से ही गुणवत्ता के लिहाज से सवालों के घेरे में रही है। इसी लाइन पर 2009 में लाजपतनगर से आगे के हिस्से में जमरूदपुर में हादसा हुआ था, जहां निर्माणाधीन पुल गिर जाने से लाइन पर काम कर रहे कई मजदूर मारे गए थे। अगर मेट्रो प्रशासन समय रहते जरूरी व एहतियाती निगरानी नहीं बढ़ाता है तो कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। दुर्घटना के लिहाज से बेहद सुरक्षित बताई जाने वाली दिल्ली मेट्रो के अधिकारी इसे अति आधुनिक व जीरो दुर्घटना वाली मेट्रो प्रणाली बताते नहीं थकते, लेकिन असलियत यह है कि ऐसे हादसे मेट्रो प्रबंधन के इन दावों की कलई खोलते नजर आते हैं।

जुलाई 2009 में इसी लाइन पर जमरूदपुर में हुआ बड़ा हादसा था जिसमें करीब पांच मजदूरों की मौत हो गई थी और 13 घायल हुए थे। इस बार की रेलिंग गिरने की घटना को भी डीएमआरसी प्रबंधन भले ही आंधी व बारिश का नतीजा बता रहा है, लेकिन इस बात को लेकर सवाल उठने लगे हैं कि मामूली सी बारिश व आंधी से अगर मेट्रो की रेलिंग गिर सकती है तो यह कैसे सुरक्षित प्रणाली है? इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है जबकि यह लाइन साल 2010 में शुरू हुई थी और अभी इसे शुरू हुए दस साल भी नहीं बीते। मेट्रो के जानकारों का कहना है कि यह सीधा गुणवत्ता व रखरखाव में कोताही का मामला है। जमरूदपुर हादसे में भी इसी तरह की कोताही देखने को मिली थी।

आइआइटी व जेनएयू के विशेषज्ञों की अगुआई में हुई जांच में डिजाइन में खामियां पाई गई थीं, जिसके लिए लाइन के तत्कालीन परियोजना निदेशक व परियोजना प्रबंधक को जिम्मेदार ठहराया गया था। इसके बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद बताया गया कि इस संवेदनशील मामले की फाइल ही गायब हो गई है और मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इसके बाद लक्ष्मी नगर में मेट्रो का पुल गिरा था, जिससे दो लोगों की मौत हो गई थी और 30 लोग घायल हो गए थे। इसके अलावा एक बार क्रेन का चार टन का गर्डर गिरने से एक कार चालक इसकी चपेट में आ गया था। मेट्रो जानकारों का कहना है कि अभी भी मेट्रो के तमाम हिस्सों की जांच-पड़ताल की जाए तो काफी गड़बड़ियां सामने आएंगी, खासकर रखरखाव के काम में। वहीं हालिया घटना को लेकर मेट्रो प्रवक्ता का कहना है कि रेलिंग गिरने के मामले में तो अभी जांच नहीं हुई है, लेकिन रखरखाव और मरम्मत हमारा नियमित काम है, उस पर हमारा पूरा ध्यान रहता है।