आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के प्रति असंतोष बढ़ता जा रहा है। 27 मार्च को बवाना के विधायक वेद प्रकाश पाला बदल कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे। उनका कहना था कि ‘केजरीवाल का एक ही काम है कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराज्‍यपाल को बदनाम किया जाए। वे काम को पूरा किए बिना आरोप केंद्र सरकार पर मढ़ देते हैं। केजरीवाल को कुछ लोगों ने घेर रखा है जो उनके कान भरते रहते हैं।’ उसके बाद, 30 मार्च को जनकपुरी से विधायक राजेश ऋषि ने ट्विटर पर केजरीवाल को चापलूसों से दूर रहने की सलाह दे डाली। ऋषि ने भी यही कहा कि ‘केजरीवाल के नजदीक रहने वाले कुछ नेताओं ने पार्टी की कार्यप्रणाली पर एकाधिकार कर लिया है और नगर निगम चुनावों के टिकट बंटवारे में उनकी कोई नहीं सुन रहा है।’ अब बिजवासां के विधायक कर्नल दविंदर सहरावत ने साफ कहा है कि ”अरविंद केजरीवाल खुद को मायावती से भी खराब तानाशाह साबित कर रहे हैं।” सहरावत ने हफिंगटन पोस्‍ट से बातचीत में कहा, ”स्‍थानीय नेतृत्‍व को बढ़ने की इजाजत नहीं है। विधायक जनता के बीच बुरे बन जाते हैं।” सहरावत ने यह भी माना कि वह ‘सभी अन्‍य पार्टियों’ के संपर्क में रहे हैं।

कर्नल दविंदर की AAP के शीर्ष नेतृत्‍व के साथ ठीक बनती नहीं है। उन्‍होंने दावा किया कि कई AAP विधायक अकेले में या साथ में, दूसरी पार्टियों से मिल रहे हैं। सहरावत के अनुसार, पार्टी में भीतर ही भीतर क्रांति की ज्‍वाला धधक रही है क्‍योंकि सारी ताकत सिर्फ केजरीवाल और उनके कुछ ‘छोटे समर्थकों’ के हाथ में केंद्रित है। विधायक मजबूर हैं और अपने राजनैतिक भविष्‍य को लेकर परेशान हैं। सहरावत के मुताबिक, ‘पंजाब और गोवा में पार्टी की हार ने साबित किया है क‍ि वे (केजरीवाल और उनके समर्थक) नाकारा हैं।’

वेद प्रकाश और राजेश ऋषि की तरह ही सहरावत ने भी केजरीवाल पर ‘बेवजह बयानबाजी’ करने का आरोप लगाया है। उन्‍होंने कहा, ”अपने काम पर ध्‍यान देने की जगह, वो (केजरीवाल) प्रधानमंत्री को भला-बुरा कहने में बहुत वक्‍त गंवाते हैं। शुरू-शुरू में यह ठीक था, मगर अब ये सब ऐसे हो रहा है जैसे स्‍कूल का कोई बच्‍चा प्रिंसिपल को गरिया रहा हो।”

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सहरावत उन विधायकों में से हैं जो ये मानते हैं कि AAP उन सिद्धांतों से भटक चुकी है, जिनकी बुनियाद पर इसे बनाया गया था। पिछले साल जब संस्‍थापक सदस्‍यों योगेन्‍द्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से बाहर करने की बात आई थी तो सहरावत ने दो पन्‍नों के पत्र पर हस्‍ताक्षर करने से इनकार कर दिया था।