जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के एमफिल और पीएचडी के दाखिले में साक्षात्कार को सौ फीसद आधार बना डालने वाले फैसले को वोट के जरिए 98 फीसद छात्रों ने सिरे से खारिज कर दिया है। छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने यूजीसी की उस अधिसूचना पर छात्रों का नजरिया जानने के लिए जनमत संग्रह किया, जिसमें एमफिल और पीएचडी में प्रवेश के लिए मौखिक परीक्षा (साक्षात्कार) को मुख्य मानदंड बनाया गया है और इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सीटें कम की गर्इं।  आइसा (दिल्ली) के अध्यक्ष नीरज कुमार ने बुधवार को बताया कि इस फैसले के खिलाफ 98.35 फीसद वोट पड़े हैं। कुल 3455 छात्रों ने इस जनमत संग्रह में हिस्सा लिया। जिनमें से 3398 छात्रों ने सिरे से खारिज कर ‘दाखिले सौ फीसद साक्षात्कार से ही’ वाले नियम से असमर्थतता जता दी है। पक्ष में केवल 45 वोट पड़े है। जबकि 12 वोट की गिनती नहीं की गई क्योंकि इनमें से छह वोट खारीज थे और छह रिक्त। आइसा (दिल्ली) के अध्यक्ष व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीरज कुमार ने कहा कि सरकार को जेएनयू से फैसला वापस लेने का निर्देश देना चाहिए। यदि जनमत संग्रह के नतीजों पर जरा भी संदेह हो तो सरकार खुद जनमत संग्रह करा ले। लेकिन लोकतंत्र में वोट के महत्त्व का सम्मान करे।

जेएनयू छात्र संघ महासचिव सतरूपा चक्रवर्ती ने कहा, ‘मतदान दो चरणों में हुआ। मतदान के पहले चरण में करीब दो हजार छात्रों ने मत दिया। जबकि करीब डेढ हजार छात्रों ने दूसरे चरण में शिरकत की। यूजीसी की पिछले साल पांच मई की अधिसूचना के अनुसार, एमफिल पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन कर रहे उम्मीदवारों को पीजी में कम से कम 55 फीसद अंक लाने होंगे। छात्र संघ अध्यक्ष मोहित कुमार का कहना है कि जनमत संग्रह के नतीजों पर अगली रणनीति गुरुवार को तय होगी। इस बीच आइसा की श्वेता राज की तबीयत बिगड़ गई।आइसा की अध्यक्ष सुचेता डे ने कहा, ‘निश्चित तौर पर जेएनयू प्रशासन को यह फैसला वापस लेना होगा। जेएनयू प्रशासन और यूजीसी को यह साबित करना होगा कि एम फिल और पीएचडी में दाखिले के लिए व्यक्तित्व को आंकने की आखिर क्या जरूरत है? उनके पास नामी मनोवैज्ञानिकों की ऐसी कौन सी टोली है जो पांच या दस मिनट के इंटरव्यू में किसी व्यक्ति को पूरी काबलियत जांच लें, उसके शोधी क्षमता को परख ले’।

प्रदर्शनकारियों ने कहा-जेएनयू ने एम फिल और पीएचडी पाठ्यक्रमों में छात्रों की संख्या में जबरदस्त कटौती की है। विश्वविद्यालय की मूल्यांकन शाखा की ओर से घोषित नए सत्र के लिए छात्रों की संख्या के विवरण के मुताबिक स्कूल आॅफ सोशल साइंसेज (एसएसएस) में सीटों को घटाकर 232 कर दिया गया है। स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज (एसआईएस) में 141 और स्कूल आॅफ लैंग्वेज, लिटरेचर एंड कल्चर स्टडीज में सीटों की संख्या 73 कर दी गई है। छात्रों का दावा है कि विश्वविद्यालय अभी भी दाखिले में साक्षात्कार को सौ फीसद आधार वाले फैसले पर कायम है।

जेएनयू में व्याख्यान की इजाजत नहीं मिली एबीवीपी को

जेएनयू प्रशासन ने परिसर में द्रेशद्रोह विवाद के एक साल पूरा होने पर यहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के गुरुवार को ‘राष्ट्रीयता व्याख्यान’ कराने के अनुरोध को नामंजूर कर दिया। विश्वविद्यालय प्रशासन को आशंका है कि इससे परिसर में फिर तनाव फैल सकता है।  जेएनयू परिसर में राष्ट्रद्रोह के लिए छात्र नेता कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी के बाद विवादों को देखते हुए प्रशासन अहम दिनों पर शांति और सौहार्द बरकरार रखने के लिए प्रयास कर रहा है।

संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के खिलाफ आयोजित कार्यक्रम में पिछले साल देश भर में एक राष्ट्रवादी बहस छेड़ दी थी जिससे जेएनयू नकारात्मक चर्चा में आ गया था। यही वजह है कि प्रशासन ने गुरुवार को प्रस्तावित एबीवीपी के राष्ट्रीयता व्याख्यान को परिसर में शांति भंग होने की आशंका के मद्देनजर मंजूरी नहीं दी।
एबीवीपी के सौरभ शर्मा द्वारा दिए गए व्याख्यान के आवेदन के जवाब में प्रशासन ने कहा, ‘एक अहम दिन शांति और सौहार्द के हित में कार्यक्रम को टाला जा सकता है’। सौरभ शर्मा ने पिछले साल अफजल गुरु पर कार्यक्रम किए जाने का विरोध किया था। एबीवीपी ने हालांकि मंजूरी न मिलने के बावजूद कार्यक्रम के आयोजन की बात कही है।