प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ओफेंस एक्ट, बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने के लिए बनाया गया है लेकिन दिल्ली में एक ऐसा केस सामने आया है जिसमें इस एक्ट और मुस्लिम पर्सनल लॉ आमने-सामने आ गए। दिल्ली की एक स्पेशल कोर्ट ने 18 साल के एक मुस्लिम युवक को पोक्सो एक्ट के तहत रेप और किडनैपिंग के मामले से बरी कर दिया है। दरअसल नाबालिग लड़की की मां ने लड़के के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी जिसमें उन्होंने लड़के पर उनकी बेटी को बहकाकर भगाने के आरोप लगाए थे। चूंकि मामला नाबालिग लड़की से जुड़ा था इसलिए पोस्को एक्ट के तहत लड़के पर अपहरण और रेप के चार्जिस दर्ज किए गए लेकिन कोर्ट में इन्हें साबित नहीं किया जा सका।

स्पेशल कोर्ट द्वारा इस केस में फैसला सुनाते हुए यह भी ऑब्जर्व किया है कि इसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ और पोक्सो एक्ट आमने-सामने हैं। कोर्ट ने सवालिया निशान खड़ा कर कहा- अगर कोई मुस्लिम लड़का किसी नाबालिग के साथ भाग जाए और मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत उससे शादी कर साथ रहने लगे, तो क्या उसे पोक्सो एक्ट के तहत अपराधी माना जा सकता है? एएसजे यादव ने कहा- “चूंकि लड़की नाबालिग है इसलिए पोक्सो एक्ट के तहत वह शादी के लिए सहमति देने में असमर्थ है, लेकिन दूसरी उसका पर्सनल लॉ उसे इसकी इजाजत देता है। ऐसे में इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ और पोक्सो एक्ट के बीच विवाद साफ नजर आता है।”

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कोर्ट ने इस मामले में यह भी कहा कि यह ध्यान में रखना जरूरी है कि केस के दोनों पक्ष मुस्लिम समुदाय से हैं और पर्सनल लॉ दोनों को युवावस्था में होने पर शादी की इजाजत देता है। वहीं कोर्ट ने एमएलसी रिपोर्ट के आधार पर यह भी कहा कि लड़की भी अपनी युवावस्था में पहुंच गई थी। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में आरोपी के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत भी नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि वह बहला-फुस्लाकर नाबालिग को अपने साथ भगाकर ले गया था और न ही किसी तहत की जोर-जबर्दस्ती करने के सुबूत मिलते हैं। इस मामले में ऐसा दिखाई देता है कि नाबालिग की मर्जी से सब हुआ था तो आरोपी को यौन अपराध के लिए कैसे दोषी माना जा सकता है? वहीं अगर इस केस को अथॉरिटीज द्वारा तय किए गए कानून (पर्सनल लॉ) के हिसाब से भी देखा जाए, तो आरोपी दोषी नहीं है।