गुजरात में मोरबी पुल हादसे के बाद अब इसकी वजह और खामियों को लेकर जांच पड़ताल शुरू हो चुकी है। शुरुआती जांच में जो बातें निकल कर सामने आ रही हैं, उसमें गंभीर लापरवाही दिख रही है। इसकी मरम्मत के दौरान कई ऐसी ढिलाई बरती गई, जिससे बचा जाता तो शायद यह हादसा नहीं होता। सबसे बड़ी बात यह है कि जिन लोगों को इस काम की जिम्मेदारी दी गई थी, वे लोग या इस तरह के काम को करने के अनुभवी नहीं थे या फिर वे काम के दौरान हद दर्जे के लापरवाह बने रहे।

मीडिया में आ रहीं रिपोर्ट्स के मुताबिक डेढ़ सौ साल पुराने इस पुल की मरम्मत के लिए घटिया दर्जे की सामग्री का उपयोग किया गया। इससे पूरा स्ट्रक्चर ही खतरनाक हो गया। मरम्मत कार्य का कोई दस्तावेज नहीं था, न ही विशेषज्ञों से इसका दोबारा निरीक्षण कराया गया था। कंपनी के पास मरम्मत के काम को पूरा करने के लिए दिसंबर तक का समय था, लेकिन उन्होंने दीपावली और गुजराती नव वर्ष के त्योहारी सीजन में भारी भीड़ की आशंका को देखते हुए पुल को बहुत पहले खोल दिया।

सरकार से भी इसकी अनुमति नहीं ली गई थी। पुल को बिना इसका आकलन किये कि इस पर एक बार में कितने लोग आ सकते हैं, आम जनता को बेरोकटोक जाने दिया गया। इस दौरान कोई आपातकालीन बचाव और निकासी योजना नहीं बनाई गई थी। न तो जीवन रक्षक उपकरण थे और न ही जीवन रक्षक गार्ड्स वहां पर तैनात किये गये थे।

पुल के कई केबलों में जंग लग चुकी थी। पुल का वह हिस्सा जहां से यह टूटा है, वहां भी जंग लगी मिली। अगर जंग वाले केबलों को बदल दिया गया होता तो यह स्थिति नहीं आती। मरम्मत के नाम पर केवल खंभा ही बदला गया, केबल को नहीं टच किया गया। इसमें जो मटेरियल लगाया गया, उससे इसका वजन और बढ़ गया।

पुल की मरम्मत के नाम पर केवल पेंट किए

मरम्मत कार्य के लिए ठेके पर लिए गए लोग ऐसे कार्य के लिए योग्य नहीं थे। उन लोगों ने केवल मरम्मत के लिए केबलों को पेंट और पॉलिश किये। जिस फर्म को अयोग्य घोषित किया गया था, उसे 2007 में भी ऐसा अनुबंध दिया गया था।