किसी भी देश की आर्थिक स्थिति का एक प्रमुख इंडीकेटर उसकी करेंसी होती है। लेकिन वैश्विक हालातों के चलते पिछले कुछ महीनों से अमेरिकी डॉलर की ताकत बढ़ती जा रही है जबकि बाकी देशों की करेंसी बदहाल होती जा रही हैं। रुपये की बात करें तो इस हफ्ते की शुरुआत में रुपया डॉलर के मुकाबले अब के सबसे निम्नतम स्तर 78.15 पर चला गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक कमजोर घरेलू बाजार, क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमत, डॉलर की मजबूती और फॉरेन कैपिटल का आउटफ्लो से रुपया आगे भी दबाव में दिखाई दे सकता है।

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zee न्यूज की खबर के मुताबिक महंगाई के बढ़ने के साथ दुनिया के हर बड़े देश की करेंसी टूट रही है। ब्रिटेन की करेंसी पाउंड को देखा जाए तो डॉलर के मुकाबले 11 फीसदी तक गिरी है। डॉलर के मुकाबले जापानी करेंसी येन 17.2 फीसदी, चीनी करेंसी युआन 5.5 फीसदी, यूरो 7.6 फीसदी तक गिर गया है। जबकि रुपया 4. 7 फीसदी तक गिरा है। 1 डॉलर की कीमत 78.15 रुपये हो चुकी है। ये कमी ऐतिहासिक है।

इसकी सबसे बड़ी वजह केंद्रीय बैंकों की तरफ से बढ़ाई गई ब्याज दर हैं। महंगाई बढ़ने के साथ ये बैंक ब्याज दरें बढ़ा देते हैं। इसकी वजह से करेंसी कमजोर होने लग जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक ये ब्याज दर तब बढ़ती हैं जब सेंट्रल बैंक दूसरे बैंकों को बढ़ी ब्याज दर पर पैसा देता है। अमेरिका का यूएस फेडरल बैंक महंगाई बढ़ने के बाद दो बार ब्याज दर बढ़ा चुका है। अगर अमेरिका ने ब्याज दरों को बढ़ाया तो दुनिया भर के शेयर बाजार क्रैश हो सकते हैं। आज रात भी अमेरिकी सेंट्रल बैंक ब्याज दर बढ़ा सकता है। इसका बुरा अंजाम हो सकता है।

भारत का स्टॉक मार्केट भी तेजी से गिर रहा है। 13 जून को गिरावट की वजह से निवेशकों के 6 लाख करोड़ रुपये डूब गए थे। जब निवेशकों का भरोसा कम होता है तो वो अपना पैसा शेयर बाजार से पैसा निकालने लगते हैं। इससे अर्थव्यवस्था डांवाडोल होने लग जाती है। शेय़र बाजा 20 फीसदी से नीचे गिरता है तो bear territory होने के चांस बनने लग जाते हैं। रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में मंदी आने वाली है। इसकी सबसे बड़ी वजह यूक्रेन के साथ रसिया की लड़ाई। जबकि दूसरी वजह चीन जीरो कोविड पॉलिसी अपना रहा है। इससे ग्लोबल सप्लाई चेन पूरी तरह से गड़बड़ा गई है।

रिपोर्ट कहती है कि इस समस्या से निपटने के लिए महंगाई को कम करना होगा। लेकिन ये केवल सप्लाई बढ़ाने से ही कम हो सकती है। यूक्रेन के वार की वजह से सप्लाई बढ़ने की आशंका काफी कम है। सेंट्रल बैंक अपनी ब्याज दर कम कर दें तो भी महंगाई काबू हो सकती है पर ऐसा होता नहीं लगता, क्योंकि इसके जो साईड इफैक्ट होंगे वो काबू से बाहर होंगे।

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First published on: 15-06-2022 at 23:32 IST