केंद्र ने आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का खतना करने की प्रथा का विरोध करने वाली याचिका का समर्थन करता है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने पक्षकारों से याचिका और इस पहलू पर दलील रखने को कहा कि क्या इसे संविधान पीठ के पास भेजा जा सकता है। केंद्र की ओर से हाजिर अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा , ‘‘ मैं याचिकाकर्ता का समर्थन करता हूं। वे सोमवार से दलीलें रखना शुरू कर सकते हैं। ’’ वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि वह कुछ विद्वानों और चिकित्सकों की तरफ से हस्तक्षेप करने की मांग कर रहे हैं , जो समुदाय में नाबालिग लड़कियों का खतना करने की वर्षों पुरानी परंपरा के विरोधी हैं।
एक मुस्लिम समूह की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने मामले की पहले हुई सुनवाई में कहा था कि शुरूआती सुनवाई के दौरान मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाए क्योंकि यह धर्म के अनिवार्य दस्तूर के मुद्दे से जुड़ा है , जिसका परीक्षण किये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि महिलाओं का खतना किया जाना धार्मिक और पारंपरिक प्रथा है और अदालतों को इस क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये। शीर्ष अदालत ने गत नौ जुलाई को दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग लड़कियों का खतना किये जाने की प्रथा पर सवाल उठाते हुए कहा था कि यह बच्ची की शारीरिक ‘ अक्षुण्णता ’ का उल्लंघन करता है।
एेसे होता है महिलाओं का खतना: इस प्रक्रिया में महिला योनि के एक हिस्से क्लिटोरिस को रेजर ब्लेड से काट दिया जाता है। या कुछ जगहों पर क्लिटोरिस और योनि की अंदरूनी त्वचा को भी आंशिक रूप से हटा दिया जाता है। इस परंपरा को लेकर विश्वास है कि महिला यौनिकता पितृसत्ता के लिए खतरनाक है और महिलाओं को सेक्स का लुत्फ उठाने का कोई अधिकार नहीं है। माना जाता है कि जिस महिला का खतना हो चुका है, वह अपने पति के प्रति ज्यादा वफादार होगी और घर से बाहर नहीं जाएगी। संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक खतना चार तरह का हो सकता है-पूरी क्लिटोरिस को काट देना, कुछ हिस्सा काटना, योनी की सिलाई, छेदना या बींधना।